श्लोक ०१-१३

Kautilya Arthashastra by Acharya Chankya
कृतमहामात्रापसर्पः पौरजानपदान् अपसर्पयेत् सत्त्रिणो द्वन्द्विनः तीर्थसभापूगजनसमवायेषु विवादं कुर्युः सर्वगुणसम्पन्नश्चायं राजा श्रूयते, न चास्य कश्चिद् गुणो दृश्यते यः पौरजानपदान् दण्डकराभ्यां पीडयति इति तत्र येऽनुप्रशंसेयुः तान् इतरः तं च प्रतिषेधयेत् मात्स्यन्यायाभिभूताः प्रजा मनुं वैवस्वतं राजानं चक्रिरे धान्यषड्भागं पण्यदशभागं हिरण्यं चास्य भागधेयं प्रकल्पयाम् आसुः तेन भृता राजानः प्रजानां योगक्षेमावहाः तेषां किल्बिषं अदण्डकरा हरन्त्ययोगक्षेमावहाश्च प्रजानाम् तस्माद् उञ्छषड्भागं आरण्यकाऽपि निर्वपन्ति - तस्य एतद् भागधेयं योऽस्मान् गोपायति इति इन्द्रयमस्थानं एतद् राजानः प्रत्यक्षहेडप्रसादाः तान् अवमन्यमानान् दैवोऽपि दण्डः स्पृशति तस्माद् राजानो नावमन्तव्याः इत्येवं क्षुद्रकान् प्रतिषेधयेत् किंवदन्तीं च विद्युः ये चास्य धान्यपशुहिरण्यान्याजीवन्ति, तैरुपकुर्वन्ति व्यसनेऽभ्युदये वा, कुपितं बन्धुं राष्ट्रं वा व्यावर्तयन्ति, अमित्रं आटविकं वा प्रतिषेधयन्ति, तेषां मुण्डजटिलव्यञ्जनाः तुष्टातुष्टत्वं विद्युः तुष्टान् भूयोऽर्थमानाभ्यां पूजयेत् अतुष्टांः तुष्टिहेतोः त्यागेन साम्ना च प्रसादयेत् परस्पराद् वा भेदयेद् एनान्, सामन्ताटविकतत्कुलीनापरुद्धेभ्यश्च तथाऽप्यतुष्यतो दण्डकरसाधनाधिकारेण जनपदविद्वेषं ग्राहयेत् विविष्टान् उपांशुदण्डेन जनपदकोपेन वा साधयेत् गुप्तपुत्रदारान् आकरकर्मान्तेषु वा वासयेत् परेषां आस्पदभयात् क्रुद्धलुब्धभीतमानिनः तु परेषां कृत्याः तेषां कार्तान्तिकनैमित्तिकमौहूर्तिकव्यञ्जनाः परस्पराभिसम्बन्धं अमित्राटविकसम्बंधं वा विद्युः तुष्टान् अर्थमानाभ्यां पूजयेत् अतुष्टान् सामदानभेददण्डैः साधयेत् एवम् स्वविषये कृत्यान् अकृत्यांश्च विचक्षणः पर उपजापात् सम्रक्षेत् प्रधानान् क्षुद्रकान् अपि ॥१-१३॥
महामात्र द्वारा नियुक्त गुप्तचर नगर और ग्राम के लोगों की गतिविधियों पर नजर रखें। गुप्त रूप से कार्य करने वाले और जोड़े में कार्य करने वाले लोग तीर्थस्थानों, सभाओं, समुदायों और जनसमूहों में विवाद उत्पन्न करें। यह सुना जाता है कि राजा सभी गुणों से युक्त है, किंतु उसका कोई गुण दिखाई नहीं देता, जो नगर और ग्राम के लोगों को दंड और करों से पीड़ित करता हो। वहाँ जो लोग राजा की प्रशंसा करें, उन्हें दूसरा व्यक्ति और उसकी बातों का विरोध करे। मात्स्यन्याय से ग्रस्त प्रजा ने मनु वैवस्वत को राजा बनाया। उन्होंने धान्य का छठा भाग, व्यापार का दसवाँ भाग और स्वर्ण को राजा का हिस्सा निर्धारित किया। इसके द्वारा भृत राजा प्रजा की सुरक्षा और समृद्धि लाते हैं। जो दंड और कर नहीं लेते, वे प्रजा के पापों को हर लेते हैं और उनकी समृद्धि को नष्ट करने वाले नहीं होते। इसलिए, वनवासी भी उच्छिष्ट का छठा भाग देते हैं, यह कहते हुए कि यह उसका हिस्सा है जो हमारी रक्षा करता है। राजा इंद्र और यम के स्थान पर हैं, प्रत्यक्ष रूप से कठोरता और कृपा दिखाते हैं। जो लोग उनकी अवमानना करते हैं, उन्हें दैवीय दंड भी स्पर्श करता है। इसलिए राजाओं की अवमानना नहीं करनी चाहिए। इस प्रकार छोटे-मोटे लोगों को रोकना चाहिए और यह जानना चाहिए कि लोग क्या कहते हैं। जो लोग राजा के धान्य, पशु और स्वर्ण पर निर्भर हैं, वे संकट या समृद्धि में सहायता करते हैं, क्रुद्ध मित्रों या राष्ट्र को शांत करते हैं, शत्रु या वनवासियों को रोकते हैं। उनके संतुष्ट या असंतुष्ट होने की स्थिति को मुंडित और जटिल वेशधारी लोग जानें। संतुष्ट लोगों को धन और सम्मान से और अधिक पूजें। असंतुष्ट लोगों को संतुष्ट करने के लिए त्याग और सौम्यता से प्रसन्न करें। या तो उन्हें आपस में भेद करें, या पड़ोसी, वनवासी, कुलीन और बंदी लोगों से। फिर भी असंतुष्ट लोगों को दंड, कर, साधन और अधिकार द्वारा जनपद में विद्वेष उत्पन्न करवाएँ। विशिष्ट लोगों को गुप्त दंड या जनपद के क्रोध से नियंत्रित करें। गुप्त रूप से उनके पुत्र और पत्नियों को खदानों या कार्यस्थलों में रखें, ताकि शत्रुओं के भय से सुरक्षित रहें। क्रुद्ध, लोभी, भयभीत और अभिमानी लोग शत्रुओं के कार्यों में लिप्त होते हैं। उनके कृत्यों, नैमित्तिक और औहूर्तिक संकेतों से उनके आपसी संबंध या शत्रु और वनवासियों से संबंध जानें। संतुष्ट लोगों को धन और सम्मान से पूजें। असंतुष्ट लोगों को साम, दान, भेद और दंड से नियंत्रित करें। इस प्रकार अपने क्षेत्र में कार्य करने वालों और अकार्य करने वालों को समझदार व्यक्ति परस्पर उपजाप से रक्षा करे, चाहे वे प्रमुख हों या छोटे।

शासन की कला समाज के संगठन और स्थिरता का आधार है। यह केवल नियमों को लागू करने तक सीमित नहीं, बल्कि प्रजा की सुरक्षा, समृद्धि और सामाजिक सामंजस्य को सुनिश्चित करने का एक जटिल तंत्र है। शासक की भूमिका न केवल शक्ति का प्रदर्शन करना है, बल्कि समाज के विभिन्न वर्गों—नगरवासियों, ग्रामीणों, कुलीनों और सामान्यजनों—के बीच संतुलन बनाए रखना भी है। इस संतुलन को बनाए रखने के लिए शासक को सूक्ष्म बुद्धिमत्ता, रणनीतिक दूरदर्शिता और नैतिकता का सहारा लेना पड़ता है। शासन में साम, दान, भेद और दंड जैसे साधनों का उपयोग न केवल शक्ति को स्थापित करता है, बल्कि प्रजा के बीच विश्वास और निष्ठा को भी पोषित करता है।

शासन का एक महत्वपूर्ण पहलू समाज में सूचनाओं का संग्रह और विश्लेषण है। समाज के विभिन्न स्तरों पर नजर रखने वाले गुप्तचर शासक के लिए आँख और कान का काम करते हैं। वे न केवल समाज की नब्ज को समझते हैं, बल्कि संभावित असंतोष, विद्रोह या षड्यंत्र के बीजों को भी पहचानते हैं। यह सूचना शासक को समय रहते कार्रवाई करने में सक्षम बनाती है। उदाहरण के लिए, यदि कोई समूह शासक के प्रति असंतोष फैलाने का प्रयास करता है, तो गुप्तचरों के माध्यम से प्राप्त जानकारी शासक को इस असंतोष को शांत करने या उसका दिशा-परिवर्तन करने में सहायता करती है। यह कार्रवाई हमेशा दंडात्मक नहीं होती; कभी-कभी यह सौम्यता, उदारता या समझौते के रूप में हो सकती है। गुप्तचरों की यह भूमिका समाज में विश्वास और अविश्वास के बीच एक नाजुक संतुलन बनाए रखने में सहायक होती है।

शासक और प्रजा के बीच का संबंध एक सामाजिक अनुबंध की तरह है। प्रजा अपनी सुरक्षा और समृद्धि के लिए शासक को संसाधन—जैसे धान्य, पशु और स्वर्ण—प्रदान करती है। बदले में, शासक प्रजा की रक्षा और उनके कल्याण का दायित्व लेता है। यह अनुबंध तभी प्रभावी होता है, जब दोनों पक्ष अपनी जिम्मेदारियों को पूरी निष्ठा से निभाते हैं। यदि शासक प्रजा की अपेक्षाओं को पूरा करने में विफल रहता है, तो यह अनुबंध कमजोर पड़ सकता है, जिसके परिणामस्वरूप सामाजिक अस्थिरता उत्पन्न हो सकती है। प्राचीन समाजों में, यह अनुबंध स्पष्ट रूप से परिभाषित था। प्रजा स्वेच्छा से अपने संसाधनों का एक हिस्सा शासक को देती थी, ताकि वह उनकी सुरक्षा सुनिश्चित कर सके। यह परस्पर निर्भरता आज भी शासन की नींव है।

शासक की शक्ति का एक अन्य आयाम उसकी छवि से जुड़ा है। प्राचीन समाजों में, शासक को अक्सर दैवीय शक्ति का प्रतिनिधि माना जाता था। यह धारणा शासक को एक नैतिक और आध्यात्मिक बल प्रदान करती थी, जिससे वह प्रजा के बीच अपनी स्थिति को और मजबूत कर सकता था। हालांकि, यह शक्ति असीमित नहीं थी। शासक को प्रजा की आवश्यकताओं और भावनाओं के प्रति संवेदनशील रहना पड़ता था। उदाहरण के लिए, यदि कोई शासक अपनी प्रजा पर अत्यधिक कर थोपता है या कठोर दंड देता है, तो वह प्रजा के बीच असंतोष को जन्म दे सकता है। इसके विपरीत, एक शासक जो उदारता और सौम्यता का प्रदर्शन करता है, वह प्रजा के बीच विश्वास और निष्ठा को बढ़ावा देता है।

शासन में भेद नीति का उपयोग भी एक महत्वपूर्ण रणनीति है। समाज में विभिन्न समूहों—चाहे वे सामाजिक, आर्थिक या क्षेत्रीय हों—के बीच मतभेद स्वाभाविक रूप से उत्पन्न होते हैं। शासक का कौशल इस बात में निहित है कि वह इन मतभेदों को समझे और उनका उपयोग समाज को नियंत्रित करने के लिए करे। उदाहरण के लिए, यदि दो समुदायों के बीच तनाव है, तो शासक दोनों को अलग-अलग लाभ देकर उन्हें शांत कर सकता है। यह रणनीति न केवल संभावित विद्रोह को रोकती है, बल्कि समाज के विभिन्न हिस्सों को एकजुट रखने में भी मदद करती है। भेद नीति का यह उपयोग शासक को समाज में संतुलन बनाए रखने में सक्षम बनाता है, साथ ही उसकी शक्ति को और सुदृढ़ करता है।

शासन में असंतोष का प्रबंधन एक जटिल कला है। असंतुष्ट समूहों को केवल दंडित करना पर्याप्त नहीं है। शासक को यह समझना होगा कि असंतोष के मूल में क्या है—क्या यह लोभ, भय, अभिमान या अन्याय का परिणाम है? इस समझ के आधार पर, शासक को विभिन्न साधनों—जैसे सौम्यता, उदारता, या यहाँ तक कि विभेदकारी नीतियों—का उपयोग करना पड़ता है। उदाहरण के लिए, यदि कोई समूह आर्थिक कारणों से असंतुष्ट है, तो उसे धन या संसाधनों का वितरण करके शांत किया जा सकता है। यदि असंतोष वैचारिक है, तो शासक को संवाद और समझौते के माध्यम से उसे संबोधित करना पड़ सकता है। यह प्रक्रिया शासक की बुद्धिमत्ता और दूरदृष्टि को दर्शाती है।

शासक की शक्ति का एक अन्य महत्वपूर्ण पहलू समाज में संतुष्ट और असंतुष्ट तत्वों को संतुलित करने की क्षमता है। संतुष्ट लोगों को और अधिक सम्मान और संसाधन देकर उनकी निष्ठा को मजबूत किया जा सकता है। इसके विपरीत, असंतुष्ट लोगों को सौम्यता और उदारता के माध्यम से शांत करना पड़ता है। यदि ये साधन विफल हो जाते हैं, तो शासक को भेद या दंड जैसे कठोर उपायों का सहारा लेना पड़ सकता है। यह संतुलन शासक की बुद्धिमत्ता का परिचायक है, क्योंकि यह न केवल समाज की स्थिरता को बनाए रखता है, बल्कि शासक की शक्ति को भी सुदृढ़ करता है।

शासन में गुप्तचरों की भूमिका केवल निगरानी तक सीमित नहीं है। वे समाज के विभिन्न स्तरों पर होने वाली गतिविधियों को समझने और उनका विश्लेषण करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। उदाहरण के लिए, यदि कोई समूह शासक के प्रति विद्वेष फैलाने का प्रयास करता है, तो गुप्तचर इसकी जानकारी शासक तक पहुँचाते हैं। यह जानकारी शासक को समय रहते कार्रवाई करने में सक्षम बनाती है। यह कार्रवाई हमेशा दंडात्मक नहीं होती; कभी-कभी यह सौम्यता या समझौते के रूप में हो सकती है। गुप्तचरों की यह भूमिका समाज में विश्वास और अविश्वास के बीच एक नाजुक संतुलन बनाए रखने में सहायक होती है।

शासन की कला में यह समझ निहित है कि शक्ति का उपयोग केवल बल द्वारा नहीं, बल्कि बुद्धि, सूझबूझ और नैतिकता के साथ किया जाना चाहिए। शासक का असली कौशल इस बात में है कि वह समाज के विभिन्न तत्वों—चाहे वे संतुष्ट हों या असंतुष्ट, शक्तिशाली हों या कमजोर—को एक सामंजस्यपूर्ण ढांचे में बाँध सके। यह प्रक्रिया न केवल शासक की बुद्धिमत्ता को दर्शाती है, बल्कि समाज की दीर्घकालिक स्थिरता को भी सुनिश्चित करती है।

शासन में नैतिकता का भी महत्वपूर्ण स्थान है। शासक को केवल शक्ति का प्रदर्शन नहीं करना चाहिए, बल्कि उसे प्रजा के प्रति अपनी जिम्मेदारी को भी समझना चाहिए। यह जिम्मेदारी केवल सुरक्षा और समृद्धि तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें समाज में न्याय और समानता को बढ़ावा देना भी शामिल है। एक शासक जो अपनी प्रजा के प्रति संवेदनशील है, वह न केवल उनकी निष्ठा अर्जित करता है, बल्कि समाज में दीर्घकालिक स्थिरता भी सुनिश्चित करता है।

शासन में सूचना का महत्व भी अनदेखा नहीं किया जा सकता। समाज में होने वाली गतिविधियों, विचारों और भावनाओं की जानकारी शासक को समाज की नब्ज को समझने में मदद करती है। यह जानकारी न केवल निगरानी के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि समाज में उत्पन्न होने वाले विवादों को समझने और उनका समाधान करने के लिए भी आवश्यक है। उदाहरण के लिए, यदि कोई समूह शासक के प्रति असंतोष व्यक्त करता है, तो यह जानकारी शासक को समय रहते कार्रवाई करने में सक्षम बनाती है। यह कार्रवाई हमेशा दंडात्मक नहीं होती; कभी-कभी यह संवाद, समझौते या उदारता के रूप में हो सकती है।

शासन में संतुलन बनाए रखना एक जटिल कला है। शासक को समाज के विभिन्न वर्गों—चाहे वे नगरवासी हों, ग्रामीण हों, कुलीन हों या सामान्यजन—के बीच संतुलन बनाए रखना पड़ता है। यह संतुलन केवल शक्ति के प्रदर्शन से नहीं, बल्कि बुद्धिमत्ता, सूझबूझ और नैतिकता के साथ प्राप्त किया जाता है। उदाहरण के लिए, यदि कोई समूह असंतुष्ट है, तो शासक को यह समझना पड़ता है कि इस असंतोष का मूल कारण क्या है। क्या यह आर्थिक असमानता है, सामाजिक अन्याय है, या वैचारिक मतभेद हैं? इस समझ के आधार पर, शासक को उपयुक्त साधनों—जैसे सौम्यता, उदारता, भेद या दंड—का उपयोग करना पड़ता है।

शासन में प्रजा की निष्ठा और विश्वास अर्जित करना शासक की सबसे बड़ी उपलब्धि है। यह निष्ठा केवल शक्ति या भय के बल पर नहीं, बल्कि न्याय, समानता और संवेदनशीलता के माध्यम से प्राप्त की जाती है। एक शासक जो अपनी प्रजा की आवश्यकताओं और भावनाओं को समझता है, वह न केवल उनकी निष्ठा अर्जित करता है, बल्कि समाज में दीर्घकालिक स्थिरता भी सुनिश्चित करता है।

शासन में रणनीति और नैतिकता का संयोजन ही एक शासक को सफल बनाता है। यह संयोजन न केवल समाज की स्थिरता को सुनिश्चित करता है, बल्कि शासक की शक्ति को भी सुदृढ़ करता है। क्या यह संतुलन आधुनिक शासन प्रणालियों में भी उतना ही प्रासंगिक है, जितना प्राचीन काल में था? यह प्रश्न आज भी चिंतन का विषय है।