श्लोक ०१-१०

Kautilya Arthashastra by Acharya Chankya
मन्त्रिपुरोहितसखः सामान्येष्वधिकरणेषु स्थापयित्वाऽमात्यान् उपधाभिः शोधयेत्
पुरोहितं अयाज्ययाजनाध्यापने नियुक्तं अमृष्यमाणं राजाऽवक्षिपेत्
स सत्त्रिभिः शपथपूर्वं एकैकं अमात्यं उपजापयेत् - अधार्मिको अयं राजा, साधु धार्मिकं अन्यं अस्य तत्कुलीनं अपरुद्धं कुल्यं एकप्रग्रहं सामन्तं आटविकं औपपादिकं वा प्रतिपादयामः, सर्वेषां एतद् रोचते, कथं वा तव इति
प्रत्याख्याने शुचिः । इति धर्म उपधा
सेनापतिरसत्प्रग्रहेणावक्षिप्तः सत्त्रिभिरेकैकं अमात्यं उपजापयेत् लोभनीयेनार्थेन राजविनाशाय, सर्वेषां एतद् रोचते, कथं वा तव इति
प्रत्याख्याने शुचिः । इत्यर्थ उपधा
परिव्राजिका लब्धविश्वासाऽन्तःपुरे कृतसत्कारा महामात्रं एकैकं उपजपेत् - राजमहिषी त्वां कामयते कृतसमागम उपाया, महान् अर्थश्च ते भविष्यति इति
प्रत्याख्याने शुचिः । इति काम उपधा
प्रहवणनिमित्तं एको अमात्यः सर्वान् अमात्यान् आवाहयेत्
तेन उद्वेगेन राजा तान् अवरुन्ध्यात्
कापटिकश्चात्र पूर्वावरुद्धः तेषां अर्थमानावक्षिप्तं एकैकं अमात्यं उपजपेत् - असत् प्रवृत्तो अयं राजा, साध्वेनं हत्वाऽन्यं प्रतिपादयामः, सर्वेषां एतद् रोचते, कथं वा तव इति
प्रत्याख्याने शुचिः । इति भय उपधा
तत्र धर्म उपधाशुद्धान् धर्मस्थीयकण्टकशोधनेषु कर्मसु स्थापयेत्, अर्थ उपधाशुद्धान् समाहर्तृसम्निधातृनिचयकर्मसु, काम उपधा शुद्धान् बाह्याभ्यन्तरविहाररक्षासु, भय उपधाशुद्धान् आसन्नकार्येषु राज्ञः
सर्व उपधाशुद्धान् मन्त्रिणः कुर्यात्
सर्वत्राशुचीन् खनिद्रव्यहस्तिवनकर्मान्तेषु उपयोजयेत्
त्रिवर्गभयसंशुद्धान् अमात्यान् स्वेषु कर्मसु ।
अधिकुर्याद् यथा शौचं इत्याचार्या व्यवस्थिताः
न त्वेव कुर्याद् आत्मानं देवीं वा लक्ष्यं ईश्वरः ।
शौचहेतोरमात्यानां एतत् कौटिल्यदर्शनम्
न दूषणं अदुष्टस्य विषेण इवाम्भसश्चरेत् ।
कदाचिद्द् हि प्रदुष्टस्य नाधिगम्येत भेषजम्
कृता च कलुषाबुद्धिरुपधाभिश्चतुर्विधा ।
नागत्वाऽन्तं निवर्तेत स्थिता सत्त्ववतां धृतौ
तस्माद् बाह्यं अधिष्ठानं कृत्वा कार्ये चतुर्विधे ।
शौचाशौचं अमात्यानां राजा मार्गेत सत्त्रिभिः
मंत्री, पुरोहित और मित्र को सामान्य कार्यों में नियुक्त करने के बाद, मंत्रियों की शुद्धता का परीक्षण उपधाओं (परीक्षाओं) द्वारा करना चाहिए। पुरोहित को, जो अनुचित यज्ञ कराने या शिक्षा देने में नियुक्त हो और जिसे यह असहनीय लगे, राजा को अपमानित करना चाहिए। वह तीन गुप्तचरों के माध्यम से प्रत्येक मंत्री से शपथपूर्वक पूछे - यह राजा अधार्मिक है, उचित होगा कि इसके स्थान पर किसी धर्मनिष्ठ, कुलीन, बंदी, परिवार के, एकमात्र प्रभारी, सामंत, जंगली, या सहायक को स्थापित करें, सभी को यह पसंद है, तुम्हारा क्या विचार है? यदि वह अस्वीकार करता है, तो वह शुद्ध है। यह धर्म की उपधा है। सेनापति, जो अनुचित प्रलोभन से अपमानित हो, तीन गुप्तचरों के माध्यम से प्रत्येक मंत्री से लोभनीय धन के लिए राजा के विनाश हेतु पूछे, सभी को यह पसंद है, तुम्हारा क्या विचार है? यदि वह अस्वीकार करता है, तो वह शुद्ध है। यह अर्थ की उपधा है। विश्वास प्राप्त परिव्राजिका, अंतःपुर में सम्मानित होकर, प्रत्येक महामात्र से कहे - रानी तुमसे प्रेम करती है, मिलन का उपाय हो गया है, और तुम्हें बहुत धन मिलेगा। यदि वह अस्वीकार करता है, तो वह शुद्ध है।寡ी यह काम की उपधा है। एक मंत्री, युद्ध के कारण, सभी मंत्रियों को बुलाए। उस भय से राजा उन्हें बंदी बनाए। एक कपटी, जो पहले से बंदी हो, प्रत्येक अपमानित धन-मान वाले मंत्री से कहे - यह राजा अनुचित कार्य में लगा है, इसे मारकर किसी अन्य को स्थापित करें, सभी को यह पसंद है, तुम्हारा क्या विचार है? यदि वह अस्वीकार करता है, तो वह शुद्ध है। यह भय की उपधा है। जो धर्म की उपधा में शुद्ध हों, उन्हें धर्मस्थीय और कंटकशोधन कार्यों में लगाए। जो अर्थ की उपधा में शुद्ध हों, उन्हें संग्रहकर्ता, कोषाध्यक्ष और संचय कार्यों में। जो काम की उपधा में शुद्ध हों, उन्हें बाहरी-आंतरिक विहार और रक्षा कार्यों में। जो भय की उपधा में शुद्ध हों, उन्हें राजा के निकट कार्यों में। जो सभी उपधाओं में शुद्ध हों, उन्हें मंत्रियों के रूप में नियुक्त करे। जो सभी जगह अशुद्ध हों, उन्हें खनन, धन, हाथी और वन कार्यों में लगाए। त्रिवर्ग और भय में शुद्ध मंत्रियों को उनके कार्यों में नियुक्त करे, जैसा शुद्धता के अनुसार आचार्यों ने निर्धारित किया है। राजा स्वयं या रानी को लक्ष्य न बनाए। मंत्रियों की शुद्धता के लिए यह कौटिल्य का दर्शन है। निर्दोष को विष की तरह दूषित न करें, क्योंकि दूषित का कोई उपाय नहीं मिलता। चार प्रकार की उपधाओं से दूषित बुद्धि स्थायी हो जाती है और सज्जनों की दृढ़ता में बनी रहती है। अतः बाहरी आधार बनाकर चार प्रकार के कार्यों में मंत्रियों की शुद्धता-अशुद्धता को राजा तीन गुप्तचरों द्वारा जांचे।

राजनीतिक शुद्धता और शासन में विश्वास की परीक्षा

राजनीति का आधार विश्वास और शुद्धता पर टिका होता है। शासन व्यवस्था में मंत्रियों, सलाहकारों और अधिकारियों की निष्ठा का मूल्यांकन करना न केवल आवश्यक है, बल्कि यह शासन की स्थिरता और दीर्घकालिक सफलता का मूलमंत्र है। यह विचार उस प्रक्रिया को रेखांकित करता है जिसमें शासक अपने सहायकों की नैतिकता, निष्ठा और कर्तव्यनिष्ठा की जांच करता है। यह प्रक्रिया न केवल व्यक्तिगत चरित्र की पड़ताल करती है, बल्कि सामूहिक रूप से शासन के ढांचे को सुदृढ़ करने का प्रयास भी करती है। इस संदर्भ में, चार प्रकार की उपधाएं—धर्म, अर्थ, काम और भय—के माध्यम से शुद्धता की जांच का विचार सामने आता है। प्रत्येक उपधा एक विशिष्ट मानवीय प्रवृत्ति को लक्षित करती है, और इनके माध्यम से शासक अपने सहायकों की वास्तविक प्रकृति को समझ सकता है।

धर्म की उपधा: नैतिकता की कसौटी

धर्म की उपधा में, सहायकों की निष्ठा को इस प्रश्न के माध्यम से परखा जाता है कि क्या वे शासक के प्रति अपनी निष्ठा को बनाए रखेंगे, जब उन्हें यह विश्वास दिलाया जाए कि शासक अधार्मिक हो गया है। यह एक गहन नैतिक प्रश्न है। यदि कोई सहायक यह मान लेता है कि शासक का मार्ग अधार्मिक है और वह उसका विरोध करने या उसे त्यागने का विचार करता है, तो यह उसकी नैतिकता और निष्ठा की गहराई को दर्शाता है। दूसरी ओर, यदि वह इस प्रलोभन में पड़कर शासक के विरुद्ध षड्यंत्र में शामिल हो जाता है, तो उसकी निष्ठा संदिग्ध हो जाती है। यह उपधा इस सत्य को उजागर करती है कि सच्ची निष्ठा केवल तभी प्रकट होती है, जब व्यक्ति कठिन नैतिक परिस्थितियों का सामना करता है। उदाहरण के लिए, यदि कोई सहायक यह जानकर कि शासक कथित रूप से अधार्मिक हो गया है, फिर भी उसका साथ देता है, तो क्या यह उसकी निष्ठा का प्रमाण है, या अवसरवादिता का? यह प्रश्न दार्शनिक दृष्टिकोण से विचारणीय है। सच्ची निष्ठा वह नहीं जो केवल लाभ के लिए हो, बल्कि वह जो कठिन परिस्थितियों में भी धर्म और सत्य के प्रति अडिग रहे। इस उपधा का उद्देश्य सहायकों को उन कार्यों में नियुक्त करना है जो धर्म और नैतिकता से संबंधित हों, जैसे कि कानून व्यवस्था की स्थापना और सामाजिक कल्याण। जो इस परीक्षा में शुद्ध पाए जाते हैं, उन्हें ऐसी जिम्मेदारियों में रखा जाता है जहां उनकी नैतिकता शासन को दिशा दे सके।

अर्थ की उपधा: लोभ का प्रलोभन

अर्थ की उपधा में, सहायकों की निष्ठा को धन और सत्ता के प्रलोभन के माध्यम से परखा जाता है। यह विचार इस सत्य पर आधारित है कि मानव स्वभाव में लोभ एक शक्तिशाली प्रेरक शक्ति है। यदि कोई सहायक धन के लालच में शासक के विरुद्ध कार्य करने को तैयार हो जाता है, तो उसकी निष्ठा सतही और अविश्वसनीय सिद्ध होती है। यह उपधा शासक को यह समझने में सहायता करती है कि कौन से सहायक केवल व्यक्तिगत लाभ के लिए कार्य करते हैं और कौन से वास्तव में शासन के प्रति समर्पित हैं। उदाहरण के तौर पर, यदि कोई सहायक धन के बदले शासक के विरुद्ध षड्यंत्र में शामिल होने को तैयार हो जाता है, तो यह उसकी नैतिक कमजोरी को दर्शाता है। इसके विपरीत, जो इस प्रलोभन को ठुकरा देता है, वह न केवल शासक के प्रति निष्ठावान सिद्ध होता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि वह लोभ से ऊपर है। ऐसे सहायकों को आर्थिक और प्रशासनिक जिम्मेदारियों, जैसे कर संग्रह और वित्त प्रबंधन, में नियुक्त किया जाता है, जहां उनकी शुद्धता शासन की आर्थिक स्थिरता को सुनिश्चित करती है। यह प्रक्रिया इस तथ्य को रेखांकित करती है कि शासन में आर्थिक संसाधनों का प्रबंधन केवल तकनीकी कौशल पर नहीं, बल्कि नैतिक शुद्धता पर भी निर्भर करता है।

काम की उपधा: इच्छा की अग्निपरीक्षा

काम की उपधा में, सहायकों की निष्ठा को उनकी इच्छाओं और व्यक्तिगत कामनाओं के माध्यम से परखा जाता है। यह उपधा विशेष रूप से सूक्ष्म और जटिल है, क्योंकि यह मानव स्वभाव की सबसे गहरी और व्यक्तिगत प्रवृत्तियों को छूती है। यदि कोई सहायक शासक की रानी के प्रति आकर्षण या अन्य व्यक्तिगत इच्छाओं के प्रलोभन में पड़ जाता है, तो वह अपनी निष्ठा को जोखिम में डालता है। यह उपधा इस तथ्य को उजागर करती है कि जो व्यक्ति अपनी इच्छाओं पर नियंत्रण नहीं रख सकता, वह शासन के प्रति भी पूरी तरह निष्ठावान नहीं रह सकता। इस संदर्भ में, यह विचारणीय है कि क्या इच्छा पर नियंत्रण शासन में निष्ठा का एकमात्र मापदंड हो सकता है। उदाहरण के लिए, यदि कोई सहायक इस प्रलोभन को ठुकरा देता है, तो क्या यह उसकी नैतिक शक्ति का प्रमाण है, या केवल सामाजिक भय का परिणाम? यह उपधा इस बात पर भी प्रकाश डालती है कि शासन में व्यक्तिगत और सामूहिक हितों के बीच संतुलन बनाना कितना कठिन होता है। जो इस परीक्षा में शुद्ध पाए जाते हैं, उन्हें आंतरिक और बाह्य सुरक्षा जैसे संवेदनशील कार्यों में नियुक्त किया जाता है, जहां उनकी निष्ठा और आत्म-नियंत्रण शासन की स्थिरता के लिए आवश्यक होते हैं।

भय की उपधा: संकट में निष्ठा

भय की उपधा में, सहायकों की निष्ठा को संकट और खतरे की स्थिति में परखा जाता है। यह उपधा इस विचार पर आधारित है कि सच्ची निष्ठा तब प्रकट होती है, जब व्यक्ति को अपने जीवन या सुरक्षा के लिए खतरे का सामना करना पड़ता है। यदि कोई सहायक भय के कारण शासक के विरुद्ध कार्य करने को तैयार हो जाता है, तो उसकी निष्ठा संदिग्ध हो जाती है। यह उपधा शासक को यह समझने में सहायता करती है कि कौन से सहायक कठिन परिस्थितियों में भी उसके साथ खड़े रहेंगे। यह उपधा इस दार्शनिक प्रश्न को जन्म देती है कि क्या भय के अभाव में निष्ठा का वास्तविक मूल्यांकन संभव है। उदाहरण के लिए, यदि कोई सहायक भय के कारण शासक के प्रति निष्ठा दिखाता है, तो क्या यह सच्ची निष्ठा है, या केवल आत्म-संरक्षण की प्रवृत्ति? जो इस परीक्षा में शुद्ध पाए जाते हैं, उन्हें शासक के निकटतम कार्यों, जैसे युद्ध और संकट प्रबंधन, में नियुक्त किया जाता है। यह प्रक्रिया इस तथ्य को रेखांकित करती है कि शासन में सबसे कठिन परिस्थितियों में भी निष्ठा और साहस की आवश्यकता होती है।

शुद्धता का वर्गीकरण और कार्यों का आवंटन

इन चार उपधाओं के माध्यम से सहायकों की शुद्धता का मूल्यांकन करने के बाद, उन्हें उनकी योग्यता और निष्ठा के आधार पर विभिन्न कार्यों में नियुक्त किया जाता है। जो धर्म की उपधा में शुद्ध पाए जाते हैं, उन्हें नैतिकता और कानून से संबंधित कार्यों में रखा जाता है। जो अर्थ की उपधा में शुद्ध पाए जाते हैं, उन्हें आर्थिक और प्रशासनिक जिम्मेदारियों में नियुक्त किया जाता है। काम की उपधा में शुद्ध सहायकों को सुरक्षा और संवेदनशील कार्यों में रखा जाता है, जबकि भय की उपधा में शुद्ध सहायकों को शासक के निकटतम और सबसे महत्वपूर्ण कार्यों में नियुक्त किया जाता है। इसके विपरीत, जो इन उपधाओं में अशुद्ध पाए जाते हैं, उन्हें कम महत्वपूर्ण और जोखिम भरे कार्यों, जैसे खनन, व्यापार या वन प्रबंधन, में नियुक्त किया जाता है। यह वर्गीकरण इस तथ्य को रेखांकित करता है कि शासन में हर व्यक्ति की भूमिका उसकी नैतिकता और निष्ठा के आधार पर निर्धारित होनी चाहिए। यह प्रक्रिया न केवल शासन की दक्षता को बढ़ाती है, बल्कि यह भी सुनिश्चित करती है कि शासक के आसपास केवल वही लोग हों जो वास्तव में निष्ठावान और विश्वसनीय हों।

दार्शनिक चिंतन: शुद्धता और शासन का संतुलन

यह प्रक्रिया कई दार्शनिक प्रश्नों को जन्म देती है। पहला, क्या शुद्धता की यह परीक्षा वास्तव में सहायकों की निष्ठा का सटीक मापदंड है? क्या यह संभव है कि कोई सहायक इन उपधाओं में शुद्ध पाया जाए, लेकिन वास्तविक परिस्थितियों में उसकी निष्ठा डगमगा जाए? दूसरा, क्या शासक को स्वयं इस प्रकार की परीक्षा से गुजरना चाहिए? यदि शासक स्वयं अपनी निष्ठा और नैतिकता को परखने में असमर्थ है, तो क्या वह अपने सहायकों की शुद्धता का सही मूल्यांकन कर सकता है? इसके अलावा, यह विचारणीय है कि क्या यह प्रक्रिया शासक और सहायकों के बीच विश्वास को कमजोर कर सकती है। यदि सहायक यह जानते हैं कि उनकी निष्ठा को बार-बार परखा जा रहा है, तो क्या वे शासक के प्रति पूरी तरह से खुले और ईमानदार रह पाएंगे? यह प्रक्रिया इस तथ्य को भी उजागर करती है कि शासन में विश्वास और संदेह के बीच एक सूक्ष्म संतुलन बनाए रखना आवश्यक है। बहुत अधिक संदेह शासक को अलग-थलग कर सकता है, जबकि बहुत अधिक विश्वास उसे कमजोर बना सकता है।

सामाजिक और नैतिक आयाम

यह प्रक्रिया सामाजिक और नैतिक आयामों को भी छूती है। उदाहरण के लिए, धर्म की उपधा में यह प्रश्न उठता है कि क्या नैतिकता का आधार केवल शासक के प्रति निष्ठा है, या यह व्यापक सामाजिक कल्याण से जुड़ा होना चाहिए। यदि कोई सहायक शासक के अधार्मिक कार्यों का विरोध करता है, तो क्या उसे दंडित किया जाना चाहिए, या उसकी इस निष्ठा को सम्मान दिया जाना चाहिए? इसी तरह, अर्थ की उपधा इस प्रश्न को उठाती है कि क्या आर्थिक लाभ और व्यक्तिगत हित सामूहिक कल्याण से ऊपर हो सकते हैं। काम और भय की उपधाएं मानव स्वभाव की गहरी कमजोरियों को उजागर करती हैं। यह विचारणीय है कि क्या इन कमजोरियों का उपयोग करके शासक वास्तव में अपने सहायकों की सच्चाई को समझ सकता है, या यह केवल एक कृत्रिम परीक्षा है जो वास्तविकता को पूरी तरह से प्रतिबिंबित नहीं करती। यह प्रक्रिया इस तथ्य को भी रेखांकित करती है कि शासन में नैतिकता और व्यावहारिकता के बीच एक निरंतर तनाव बना रहता है।

निष्कर्ष के बिना चिंतन

शासन में शुद्धता और निष्ठा की यह प्रक्रिया केवल एक प्रशासनिक उपकरण नहीं है, बल्कि यह मानव स्वभाव, नैतिकता और सत्ता के बीच जटिल संबंधों का एक गहन अध्ययन है। यह प्रक्रिया हमें यह सोचने के लिए प्रेरित करती है कि क्या सच्ची निष्ठा को मापा जा सकता है, और यदि हां, तो क्या यह मापदंड शासक और सहायकों के बीच विश्वास को मजबूत करता है, या इसे कमजोर करता है। यह विचार हमें उस बिंदु पर छोड़ता है जहां हमें स्वयं से पूछना होगा: क्या शासन केवल शक्ति और नियंत्रण का खेल है, या यह एक ऐसी कला है जो मानव स्वभाव की गहराइयों को समझने और उसका सम्मान करने की मांग करती है?