परश्वानं च मूर्खं च सप्त सुप्तान्न बोधयेत् ॥ ०९-०७॥
अहिंसक, राजा, शार्दूल (शेर), वृद्ध, बालक, परश्वान (क्रोधित), मूर्ख और सोये हुए सात प्रकार के व्यक्तियों को ज्ञान न देना चाहिए, यह विधान अत्यंत गहन और व्यवहारिक दृष्टिकोण से स्थापित है। प्रत्येक प्रकार की इस स्थिति में ज्ञान देना असफलता, हानि और अनावश्यक संघर्ष का कारण बन सकता है।
हिंसक या उग्र स्वभाव वाले व्यक्ति को ज्ञान देना व्यर्थ हो सकता है क्योंकि वे अक्सर गुस्से में आकर विवेकहीन निर्णय लेते हैं; उनके क्रोध में बौद्धिक संवाद का कोई प्रभाव नहीं होता। इसी प्रकार, राजा जो सत्ता में व्यस्त रहता है और दुराचार से ग्रस्त हो सकता है, वह ज्ञान ग्रहण करने में असमर्थ हो सकता है, या उसका लाभ समाज में खलल पैदा कर सकता है।
शार्दूल, अर्थात् शेर या वीर, जो स्वभाव से निडर और आक्रामक होता है, उसकी स्थिति में ज्ञान देना कठिन हो जाता है क्योंकि वह अपने स्वाभाविक गुणों के कारण परिवर्तित नहीं होता। वृद्ध व्यक्ति ज्ञान के ग्रहण में बाधित नहीं होता लेकिन उसकी मानसिक क्षमता और ग्रहणशीलता में कमी हो सकती है, अतः उसे ज्ञान देते समय सावधानी आवश्यक है। बालक का मन भी ज्ञान के लिए अभी पूर्ण रूप से तैयार नहीं होता, अतः अधूरी शिक्षा उससे अपेक्षित परिणाम नहीं दे पाती।
परश्वान अर्थात् क्रोधित या आक्रांत व्यक्ति जब क्रोध की अवस्था में होता है तो उसका मन ज्ञान ग्रहण के लिए उपयुक्त नहीं होता, क्योंकि क्रोध मानसिक अशांति और असमर्थता का कारण बनता है। मूर्ख व्यक्ति विवेक या बुद्धि की कमी के कारण ज्ञान समझने में असमर्थ होता है, अतः सीधे ज्ञान देना उसका लाभ नहीं करता।
सप्त सुप्त अर्थात् गहरे निद्रावस्था में पड़े व्यक्ति का मस्तिष्क ज्ञान ग्रहण के लिए निष्क्रिय होता है, इसलिए वह जाग्रत अवस्था में आए बिना शिक्षित नहीं किया जा सकता।
यह नीति वास्तविक जीवन में शिक्षा के सीमाओं को स्पष्ट करती है। शिक्षा का प्रभाव तभी संभव है जब श्रोता की मनोदशा और क्षमता उपयुक्त हो। जब मनुष्य की मानसिक स्थिति उपयुक्त नहीं होती, तब ज्ञान देना व्यर्थ होता है और कभी-कभी उल्टा प्रभाव भी डाल सकता है।
यहां सात प्रकारों की सूची से स्पष्ट होता है कि शिक्षा और ज्ञान का उद्देश्य केवल जानकारी देना नहीं, बल्कि वह सही समय और उपयुक्त पात्र को देना है। यह नीति शिक्षकों को भी निर्देश देती है कि किसे कब और कैसे ज्ञान प्रदान करना चाहिए ताकि उसका सही लाभ हो सके।