भाण्डारी प्रतिहारी च सप्त सुप्तान्प्रबोधयेत् ॥ ०९-०६॥
जीवन में अनेक प्रकार के व्यक्ति विभिन्न अवस्थाओं में होते हैं, जिनके प्रति अलग-अलग प्रकार की जागरूकता और संवेदना आवश्यक होती है। विद्यार्थी अर्थात् वह जो ज्ञान प्राप्त करना चाहता है, सेवक जो सेवा में लगा हो, पान्थ अर्थात् यात्रा करता हुआ व्यक्ति, क्षुधार्त जो भूख से पीड़ित है, भयकातर जो भय के कारण अस्थिर है, भाण्डारी जो कोष का संरक्षक है, और अंत में संकट में पड़े सात प्रकार के सुप्त व्यक्ति जिन्हें जाग्रत करना आवश्यक होता है।
इन सभी व्यक्तियों का मन, स्थिति और आवश्यकताएँ भिन्न-भिन्न हैं। विद्यार्थी को ज्ञान की ओर जागृत करना आवश्यक है ताकि उसका अध्ययन फलदायी हो सके। सेवक को उसके कर्तव्य के प्रति सजग करना आवश्यक है ताकि सेवा में समर्पित रहे। यात्री को उसकी यात्रा के जोखिमों से अवगत कराना चाहिए ताकि वह सतर्क रह सके। भूखे को भोजन की ओर प्रोत्साहित करना उसका जीवन रक्षा का प्रश्न है। भयभीत को उसके भय से मुक्ति दिलाना आवश्यक है जिससे वह साहसपूर्ण निर्णय ले सके। भाण्डारी को उसके कोष की रक्षा के प्रति सचेत करना चाहिए ताकि धन का दुरुपयोग न हो।
सप्त सुप्त अर्थात् वे जो जीवन के विभिन्न स्तरों पर निष्क्रिय, अनजान या अचेत अवस्था में हैं, उनको जगाना जीवन और समाज की सुरक्षा के लिए अनिवार्य है। यदि ये जागृत नहीं होंगे तो उनके कारण व्यक्तिगत और सामाजिक दोनों स्तरों पर असमंजस, अनियमितता और विघटन होगा।
यह चेतावनी एक तरह से विभिन्न प्रकार के मनोवैज्ञानिक और सामाजिक वर्गों के प्रति व्यवहारिक समझदारी का सूचक है। प्रत्येक की परिस्थिति और मनोदशा को ध्यान में रखकर उसका जागरण आवश्यक है। केवल एक ही दृष्टिकोण से सभी को समझना और उनका समाधान निकालना संभव नहीं। अतः, जीवन की विविधताओं को स्वीकार कर, सही समय पर सही व्यक्ति को उचित प्रकार से जागृत करना नीति की आवश्यकता है।
समाज और राज्य की स्थिरता इसी में निहित है कि अपने नागरिकों को उनकी स्थिति के अनुरूप जागृत किया जाए ताकि वे अपने कर्तव्यों का निर्वाह कर सकें और आपदाओं का सामना साहस और विवेक से कर सकें। यह जागरूकता केवल भौतिक ही नहीं, मानसिक और भावनात्मक स्तर पर भी होनी चाहिए।