सर्वेषु सौख्येष्वशनं प्रधानम् ।
सर्वेन्द्रियाणां नयनं प्रधानं
सर्वेषु गात्रेषु शिरः प्रधानम् ॥ ०९-०४॥
औषधि, सुख, इन्द्रिय, और शरीर के अंग जीवन के मुख्य आधार हैं, पर उनमें श्रेष्ठता का निर्धारण जीवन के सर्वोच्च मूल्य और प्राथमिकताओं के आधार पर होता है। अमृत का श्रेष्ठतम होना इस तथ्य को दर्शाता है कि अमृत—जो अमरत्व और जीवन का सार है—सभी औषधियों में सर्वोपरि है। यह शरीर के पोषण और जीवनी शक्ति का स्रोत है, जो मृत्यु और रोगों को परास्त करता है।
सुखों में भोजन की प्रधानता से स्पष्ट होता है कि सुखों की श्रृंखला में भौतिक आधार, अर्थात् पोषण, सबसे आवश्यक है। भोजन के बिना न केवल शारीरिक बल नष्ट हो जाता है, बल्कि सुख का अनुभव भी असंभव होता है। यहाँ भोजन को प्रधान कहना, साधारण तृप्ति से ऊपर उठकर जीवन के जीवंत अस्तित्व की पहचान है।
इन्द्रियों में दृष्टि का प्रधान होना गहराई से समझाया जा सकता है क्योंकि दृष्टि से मनुष्य अपने पर्यावरण को समझता है, निर्णय करता है, और जीवन की दिशा निर्धारित करता है। अन्य इन्द्रियाँ भी आवश्यक हैं, लेकिन दृष्टि के बिना समग्र अनुभव और ज्ञान संभव नहीं। यह सामाजिक, आर्थिक और आध्यात्मिक जीवन में निर्णय क्षमता का आधार है।
अंततः शरीर के अंगों में सिर को प्रधान माना गया है क्योंकि वह मन और बुद्धि का स्थान है। सिर के बिना न शरीर का समुचित संचालन संभव है, न ही मनुष्यता का विकास। यह चेतना, बुद्धि और आत्मा की पहचान का केंद्र है, जो जीवन के सभी पहलुओं को नियंत्रित करता है।
इस क्रम में श्रेष्ठता केवल भौतिक या मूर्त आधारों पर नहीं, बल्कि जीवन के उच्चतम स्तरों के सार और केन्द्रों पर आधारित है। यह क्रम जीवित, सुखी और बुद्धिमान जीवन के मूलभूत तत्वों को चिन्हित करता है और उनके आधार पर मानव जीवन के मूल्य और प्राथमिकताओं को स्पष्ट करता है।
क्या यह दृष्टिकोण हमें जीवन के प्राथमिक तत्वों के प्रति हमारे दृष्टिकोण को पुनः मापने का आग्रह नहीं करता? क्या केवल भौतिक लाभों के पीछे छुपी गहन आवश्यकताओं को समझे बिना सुख-शांति संभव है? इन प्रश्नों का उत्तर जीवन के गहरे सच को जानने के लिए आवश्यक है।