नाकरि पुष्पं खलु चन्दनस्य ।
विद्वान्धनाढ्यश्च नृपश्चिरायुः
धातुः पुरा कोऽपि न बुद्धिदोऽभूत् ॥ ०९-०३॥
प्राकृतिक वस्तुओं के गुणों की तुलना के माध्यम से मनुष्यों के गुणों को स्पष्ट करना मनोवैज्ञानिक और नैतिक शिक्षा की एक प्रभावी पद्धति है। सुवर्ण का गंध होना, इक्षु की डंडी में फल होना और चन्दन के पुष्पों की महक, ये सभी प्राकृतिक तथ्य हैं जिन्हें समझना सरल है। इन्हीं तथ्यों के अनुरूप, ज्ञानी, धनवान और राजा दीर्घायु होते हैं। यह दीर्घायु केवल शारीरिक आयु नहीं, बल्कि उनकी सामाजिक और बौद्धिक स्थिरता को भी दर्शाता है।
ज्ञानी व्यक्ति का जीवन ज्ञान और विवेक के कारण लंबा होता है, क्योंकि वह सदाचार और नीति के मार्ग पर चलता है। धनवान व्यक्ति अपनी संपदा से स्थिरता और सुरक्षा पाता है, जिससे उसकी आयु और प्रतिष्ठा बढ़ती है। राजा, जो समस्त प्रजा का संरक्षक होता है, अपने न्याय, धैर्य और नेतृत्व से लंबी आयु प्राप्त करता है।
यह भी विचारणीय है कि इतिहास में बुद्धिहीन व्यक्ति की उपस्थिति नहीं पाई गई। बुद्धि, नीति और विवेक के बिना दीर्घायु संभव नहीं। यह एक सूक्ष्म दार्शनिक दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है कि व्यक्ति का जीवन केवल भौतिक आयु से नहीं, बल्कि उसकी मानसिक, सामाजिक और नैतिक प्रबलता से भी जुड़ा होता है।
इस दृष्टि से, यह स्पष्ट होता है कि प्रकृति के अनुकूल गुणों और मानवीय गुणों के बीच सुसंगतता होती है। जैसे सुवर्ण के गंध, इक्षु की फलता और चन्दन की महक निश्चित और अपरिहार्य हैं, वैसे ही ज्ञानी, धनवान और राजा की दीर्घायु भी उनकी बुद्धि, नीति और अधिकार से सुनिश्चित होती है।
क्या केवल भौतिक संपदा या बाह्य सौंदर्य से जीवन की स्थिरता संभव है? या वह दीर्घायु जो शाश्वत मानवीय गुणों — बुद्धि, नीति, और नैतिक नेतृत्व — पर निर्भर है, वह अधिक सार्थक है? इन प्रश्नों पर विचार करना आवश्यक है क्योंकि वे जीवन के वास्तविक मूल्यों की समझ को गहरा करते हैं।
इस प्रकार, दीर्घायु और सम्मान की वास्तविकता केवल बाह्य गुणों में नहीं, बल्कि आंतरिक सामर्थ्य और सामाजिक योगदान में निहित होती है। बुद्धिहीनता का जीवन अनिवार्य रूप से सीमित और अस्थिर होता है, क्योंकि वह प्राकृतिक और सामाजिक नियमों के विरुद्ध होता है।