श्लोक ०९-०२

Chanakyaneeti Darpan by Acharya Chankya
परस्परस्य मर्माणि ये भाषन्ते नराधमाः ।
त एव विलयं यान्ति वल्मीकोदरसर्पवत् ॥ ०९-०२॥
जो नीच पुरुष एक-दूसरे के अंतरतम रहस्यों की बात करते हैं, वे स्वयं ही वल्मीक (कृमि) और उर के साँप के समान विनाश को प्राप्त होते हैं।

मनुष्य की सामाजिकता और आत्मीयता के मूल में विश्वास और गोपनीयता का सम्मान होता है। जब नीच और नीचतम व्यक्ति परस्पर के गुप्त और अन्तर्मन के रहस्यों को प्रकट करते हैं, तो वे स्वयं ही अपने अस्तित्व और सम्मान का विनाश करते हैं। मर्माणि अर्थात् अंतर्मन के रहस्यों का खुलासा स्वाभाविक रूप से विश्वासघात है और यह आत्मघात के समान होता है।

वल्मीक शब्द यहाँ उस प्रकार के कृमि (कीड़े) का सूचक है जो शरीर के अंदर उत्पन्न होकर उसे खोखला कर देता है। उर का सर्प भी एक ऐसा प्रतीक है जो शरीर के भीतर से धीरे-धीरे उसे नष्ट करता है। इस तरह के दो प्रतीक विनाश के सूचक हैं, जो दर्शाते हैं कि अपमानजनक, हानिकारक, और विश्वासघातपूर्ण व्यवहार अंततः स्वयं व्यक्ति को ही नष्ट कर देता है।

गुप्त बातें खोलने का अर्थ केवल गोपनीय जानकारी प्रकट करना नहीं, बल्कि विश्वास और सम्मान के उस धागे को तोड़ना है जो सामाजिक और व्यक्तिगत संबंधों को बनाए रखता है। जब इस धागे का क्षय होता है, तो संबंध विघटित होते हैं, और व्यक्ति का समाज में स्थान कमजोर पड़ जाता है।

नीचतम व्यक्तियों का व्यवहार स्वयं को ही समाज से अलग-थलग करने वाला होता है क्योंकि वे अपने हित में भी दूसरों के विरुद्ध कार्य करते हैं। यह आत्म-विनाश का मार्ग है जो अन्याय, द्वेष, और झूठ की नींव पर टिका होता है। हर समाज में विश्वास और रहस्य संरक्षण के नियम होते हैं, और उनका उल्लंघन करने वाला न केवल दूसरों का, बल्कि अपनी ही हानि करता है।

यह विचार इस बात को स्पष्ट करता है कि किसी भी प्रकार की बातचीत या संवाद में विवेक, सम्मान और गोपनीयता की आवश्यकता होती है। मानव संबंधों में यह बुनियाद होती है कि आंतरिक बातें बाह्य न हों, अन्यथा वह संबंध पतन की ओर अग्रसर हो जाता है।

अंतर्मन के रहस्यों का खुलासा या परस्पर का अपमान स्वयं विनाश के बीज बोना है। समाज में स्थिरता, सम्मान, और मेल-जोल के लिए गोपनीयता का संरक्षण अनिवार्य है। इसलिए, जो लोग परस्पर के मर्मांतर्गत रहस्यों का खुलासा करते हैं, वे स्वयं ही अपने विनाश के मार्ग पर चलते हैं, जो वल्मीकोदरसर्पवत् है — धीरे-धीरे, भीतर से और निश्चित रूप से।