श्लोक ०९-१४

Chanakyaneeti Darpan by Acharya Chankya
दह्यमानाः सुतीव्रेण नीचाः परयशोऽग्निना
अशक्तास्तत्पदं गन्तुं ततो निन्दां प्रकुर्वते ।
दरिद्रता धीरतया विराजतेकुवस्त्रता शुभ्रतया विराजते
कदन्नता चोष्णतया विराजते कुरूपता शीलतया विराजते ॥ ०९-१४
जो लोग अत्यधिक क्रोध से जलते हैं, वे पराई यश की आग से जलते हैं।
वे उस स्थान तक पहुँचने में असमर्थ होते हैं, और फिर निंदा करते हैं।
दरिद्रता धैर्य से शोभित होती है, पुराने वस्त्र शुद्धता से शोभित होते हैं,
बासी भोजन गर्मी से शोभित होता है, और कुरूपता शील से शोभित होती है।

समाज में अक्सर यह धारणा बन जाती है कि बाहरी रूप और भौतिक संपत्ति ही व्यक्ति की स्थिति और सम्मान का निर्धारण करते हैं।

लेकिन वास्तविकता यह है कि आंतरिक गुण और मानसिक स्थिति व्यक्ति की वास्तविक पहचान होती है।

जो लोग अत्यधिक क्रोध से जलते हैं, वे पराई यश की आग से जलते हैं।

वे उस स्थान तक पहुँचने में असमर्थ होते हैं, और फिर निंदा करते हैं।

दरिद्रता धैर्य से शोभित होती है, पुराने वस्त्र शुद्धता से शोभित होते हैं,

बासी भोजन गर्मी से शोभित होता है, और कुरूपता शील से शोभित होती है।

इस प्रकार, यह स्पष्ट होता है कि बाहरी रूप और भौतिक संपत्ति से अधिक महत्वपूर्ण आंतरिक गुण और मानसिक स्थिति हैं।