श्लोक १०-०१

Chanakyaneeti Darpan by Acharya Chankya
धनहीनो न हीनश्च धनिकः स सुनिश्चयः ।
विद्यारत्नेन हीनो यः स हीनः सर्ववस्तुषु ॥ १०-०१॥
धनहीन वह नहीं जो धनवान न हो, और धनिक वह निश्चित है जो हीन नहीं है।
जो विद्यारत्न से हीन है, वह सभी वस्तुओं में हीन है।

धन और संपत्ति को सामान्यतया सामाजिक और आर्थिक शक्ति के प्रतीक माना जाता है। परंतु धन का अभाव होने पर भी व्यक्ति की वास्तविक गरिमा या मूल्य नहीं घटता, और धन संपन्न होना ही आत्ममूल्य की गारंटी नहीं होता। धनहीन होना हीनता नहीं, बल्कि हीनता का अर्थ वास्तविकता में मनोवैज्ञानिक और आध्यात्मिक स्तर पर आत्मगौरव और बुद्धि की कमी से है।

यहाँ धन और विद्या के संबंध को गहराई से समझना आवश्यक है। धन केवल बाहरी संपत्ति है, जो सापेक्ष और अस्थायी होती है। इसके विपरीत विद्या एक अमूल्य रत्न है, जो व्यक्ति के चरित्र, विवेक, निर्णय क्षमता और आत्मविश्वास का आधार बनती है। यदि कोई व्यक्ति धनवान होते हुए भी विद्या के अभाव में रहता है, तो वह मन, बुद्धि और आत्मा की दृष्टि से हीन कहलाता है।

विद्या का स्थान सिर्फ शैक्षणिक ज्ञान तक सीमित नहीं है, बल्कि यह जीवन के हर क्षेत्र में स्पष्ट सोच, विवेकपूर्ण निर्णय, नैतिकता और आत्मनियंत्रण का सार है। विद्या के अभाव में धन की उपलब्धि अस्थिर, अधूरी और अल्पकालिक होती है, क्योंकि धन का सही उपयोग और संरक्षण विद्या के बिना संभव नहीं।

वास्तविक शक्ति और सम्मान का स्रोत विद्या है, जो जीवन के हर पक्ष को समृद्ध और स्थिर बनाती है। इस दृष्टि से, धनहीन होना असहाय या हीन होने के समकक्ष नहीं है, बल्कि विद्या हीनता ही सबसे बड़ी हीनता है जो मनुष्य को सम्पूर्ण रूप से कमजोर करती है।

इसमें एक महत्वपूर्ण प्रश्न यह भी उत्पन्न होता है कि क्या धन के बिना समाज में प्रतिष्ठा संभव है? उत्तर है, हाँ, यदि व्यक्ति विद्या, नैतिकता और कर्मठता से संपन्न हो। धन के बिना भी विद्या का रत्न जीवन की हर कठिनाई को पार कर सकता है, जबकि धन के बिना विद्या का अभाव किसी भी परिस्थिति में व्यक्ति को निराश्रय और हीन बना देता है।

अतः धन और विद्या के संदर्भ में इस दृष्टिकोण से स्पष्ट है कि धन केवल भौतिक समृद्धि का प्रतीक है, परन्तु विद्या मनुष्य के अस्तित्व की सार्थकता, सम्मान और सशक्तिकरण की नींव है। विद्या के बिना धन का मूल्य समाप्त हो जाता है, परंतु विद्या के बिना धनहीन होना कभी भी हीनता नहीं। यही कारण है कि विद्यारत्न के अभाव में व्यक्ति सर्ववस्तु में हीन है।