श्लोक ०८-०१

Chanakyaneeti Darpan by Acharya Chankya
अधमा धनमिच्छन्ति धनमानौ च मध्यमाः ।
उत्तमा मानमिच्छन्ति मानो हि महतां धनम् ॥ ॥८-०१॥
निम्न वर्ग के लोग धन की इच्छा करते हैं, मध्यम वर्ग के लोग धन और मान दोनों की; श्रेष्ठ लोग केवल मान की इच्छा करते हैं, क्योंकि मान ही महान लोगों का धन है।

मनुष्य की प्राथमिकताएँ उसके मानसिक स्तर को उजागर करती हैं। जो लोग केवल धन की लालसा में जीवन बिताते हैं, उनके लिए मूल्य, सिद्धांत, या सम्मान गौण होते हैं। उनके लिए सुख और सफलता की परिभाषा केवल संचित संपत्ति तक सीमित होती है। ऐसे लोग सुविधाओं के पीछे भागते हैं, लेकिन उनके भीतर आत्मगौरव और आत्मसंयम का अभाव होता है।

मध्यम स्तर का व्यक्ति थोड़े अधिक जटिलता के साथ सोचता है। वह धन के साथ-साथ सामाजिक प्रतिष्ठा की भी कामना करता है। उसके लिए धन एक साधन है जिससे मान प्राप्त किया जा सकता है, और मान एक साधन जिससे और अधिक धन या प्रभाव। लेकिन उसका दृष्टिकोण अब भी बाह्य तत्वों पर आधारित होता है — वह सम्मान को दूसरों की स्वीकृति और प्रशंसा के रूप में देखता है, न कि आंतरिक आत्म-सम्मान के रूप में।

श्रेष्ठ व्यक्ति की दृष्टि भिन्न होती है। वह बाहरी वैभव या संपत्ति के आकर्षण में नहीं फँसता। उसके लिए आत्मगौरव, सिद्धांतों के प्रति निष्ठा, और नैतिक बल ही सबसे बड़ी संपत्ति है। ऐसा व्यक्ति धन की अपेक्षा सम्मान को अधिक मूल्यवान मानता है — और वह सम्मान भी दिखावे का नहीं, बल्कि उस आंतरिक गरिमा का जो आचरण, ज्ञान और चरित्र से अर्जित होती है।

यह अंतर केवल मानसिक स्तर का नहीं, बल्कि जीवन के मूल लक्ष्य की समझ का है। यदि कोई व्यक्ति धन के लिए अपना आत्मसम्मान गिरवी रख देता है, तो वह आत्मिक दिवालियापन की ओर बढ़ता है। वहीँ जो व्यक्ति कठिन परिस्थितियों में भी अपने मान और सिद्धांतों को नहीं छोड़ता, वह भले ही बाह्य रूप से निर्धन हो, लेकिन भीतर से अत्यंत समृद्ध होता है।

यह सोचने का विषय है — क्या वास्तव में धन वह सब कुछ है जिसके लिए हम जीवन भर भागते रहें? या फिर वह सम्मान, जो किसी आडंबर से नहीं बल्कि हमारे आचरण से उपजता है, अधिक स्थायी और मूल्यवान है? जब समाज में केवल धन की पूजा होती है, तो नैतिकता, न्याय और सच्चरित्रता गौण हो जाती हैं। पर जब मान को सर्वोच्च मान्यता दी जाती है, तब एक सभ्य और संतुलित समाज का निर्माण होता है।

सम्मान की सबसे गूढ़ बात यह है कि इसे खरीदा नहीं जा सकता — यह केवल अर्जित किया जा सकता है। और वह अर्जन केवल बाहरी उपलब्धियों से नहीं, बल्कि आंतरिक गुणवत्ता से होता है। महान लोग उसी को धन मानते हैं, क्योंकि वह टिकाऊ, स्थायी और आत्मिक विकास का सूचक होता है।