श्लोक ०७-०५

Chanakyaneeti Darpan by Acharya Chankya
विप्रयोर्विप्रवह्न्योश्च दम्पत्योः स्वामिभृत्ययोः ।
अन्तरेण न गन्तव्यं हलस्य वृषभस्य च ॥ ०७-०५
ब्राह्मणों, ब्राह्मण और अग्नि, पति-पत्नी, स्वामी और सेवक के बीच नहीं जाना चाहिए; उसी प्रकार हल और बैल के बीच भी नहीं।

यह श्लोक अंतरंग संबंधों की मर्यादा और व्यवहारिक जीवन में सामंजस्य की सूक्ष्म समझ को दर्शाता है। चाणक्य यहां पांच विभिन्न प्रकार के जोड़े या युग्मों का उल्लेख करते हैं—ब्राह्मणों के बीच, ब्राह्मण और अग्नि के बीच, पति और पत्नी के बीच, स्वामी और सेवक के बीच, और हल तथा बैल के बीच।

इन सभी युग्मों में घनिष्ठ सहयोग और आपसी संतुलन की आवश्यकता होती है। इन युग्मों के बीच में हस्तक्षेप करने से न केवल व्यावहारिक विघ्न उत्पन्न होते हैं, बल्कि यह नैतिक और सामाजिक दृष्टिकोण से भी अनुचित माना जाता है। उदाहरण के लिए, दो ब्राह्मणों के बीच वैचारिक चर्चा या यज्ञकर्म में बीच में आना उस पवित्र संवाद को बाधित करता है; ब्राह्मण और अग्नि के मध्य तो और भी पवित्रता की भावना जुड़ी होती है, जिसमें हस्तक्षेप अपवित्रता का कारक बन सकता है।

पति-पत्नी के संबंध पारिवारिक और भावनात्मक संतुलन पर आधारित होते हैं। बाहरी हस्तक्षेप इस संतुलन को बिगाड़ सकता है। स्वामी और सेवक के बीच विश्वास पर आधारित कार्य संबंध होता है, और उसमें बीच में आना अनुशासन व कार्यक्षमता को प्रभावित कर सकता है।

अंत में, हल और बैल का संदर्भ प्रतीकात्मक है—यह कृषक जीवन की यथार्थता को दर्शाता है। जब हल चल रहा हो, और बैल जोड़ी में कार्य कर रहे हों, तो उनके बीच आना सीधे जान को खतरे में डाल सकता है। यह न केवल शारीरिक जोखिम का संकेत है, बल्कि उन कार्यगत प्रक्रियाओं को भी दर्शाता है, जो समन्वय पर आधारित हैं।

इस प्रकार यह श्लोक केवल एक चेतावनी नहीं, बल्कि जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में ‘सीमाओं की पहचान’ और ‘मौन की मर्यादा’ का शिक्षाप्रद उदाहरण है। यह शास्त्रीय सोच का एक उत्कृष्ट उदाहरण है, जहाँ सामाजिक ढाँचे की सूक्ष्मतम परतों का भी विश्लेषण किया गया है।