श्लोक ०७-०६

Chanakyaneeti Darpan by Acharya Chankya
पादाभ्यां न स्पृशेदग्निं गुरुं ब्राह्मणमेव च ।
नैव गां न कुमारीं च न वृद्धं न शिशुं तथा ॥ ०७-०६
पैरों से अग्नि, गुरु, ब्राह्मण, गाय, कुमारी, वृद्ध और शिशु को स्पर्श नहीं करना चाहिए।

इस श्लोक में सामाजिक और सांस्कृतिक शिष्टाचार का अत्यंत संवेदनशील पहलू प्रतिपादित किया गया है। आचार्य चाणक्य ने जिन व्यक्तियों या प्रतीकों का उल्लेख किया है, वे सभी भारतीय परंपरा में पवित्र, सम्माननीय या संरक्षित माने गए हैं।

श्लोक का प्रारंभ 'पादाभ्यां न स्पृशेत्' से होता है — अर्थात् पैरों से स्पर्श न करना चाहिए। पाँव को शरीर का सबसे निम्न और अपवित्र भाग माना जाता है, इसलिए किसी भी पवित्र या श्रद्धेय वस्तु या व्यक्ति को पैरों से छूना घोर अशिष्टता और अपमान का प्रतीक होता है।

1. अग्नि: अग्नि न केवल यज्ञों में देवता के रूप में प्रतिष्ठित है, बल्कि यह पवित्रता, तप, और ऊर्जा का भी प्रतीक है। इसे पैरों से स्पर्श करना पाप तुल्य माना जाता है।
2. गुरु: गुरु ज्ञान और मार्गदर्शन का स्रोत होता है। उसके चरण स्पर्श करना सम्मान का प्रतीक है, लेकिन अनजाने में भी पैर लग जाना अपमानजनक माना जाता है।
3. ब्राह्मण: ब्राह्मण न केवल वर्ण व्यवस्था में उच्च स्थान रखता है, बल्कि वह वैदिक ज्ञान और संस्कृति का वाहक भी होता है। उसका अपमान, विशेषतः पैरों से, सामाजिक और आध्यात्मिक दृष्टि से अनुचित है।
4. गौ (गाय): भारतीय संस्कृति में गौ को माता तुल्य माना गया है। वह जीवनदायिनी है और उसका संरक्षण कर्तव्य माना गया है। पैरों से उसे स्पर्श करना पवित्रता का अपमान है।
5. कुमारी: कन्याओं को देवी का रूप माना जाता है, विशेषतः कुमारी पूजन की परंपरा में। उनकी मर्यादा और सम्मान सर्वोपरि है।
6. वृद्ध: वृद्ध व्यक्ति अनुभव और ज्ञान के भंडार होते हैं। उन्हें अपमानित करना सामाजिक मूल्यों का उल्लंघन है।
7. शिशु: बालक निर्दोषता और भविष्य का प्रतीक होता है। उनका सम्मान और संरक्षण समाज की प्राथमिक जिम्मेदारी है।

इस श्लोक का उद्देश्य केवल शारीरिक स्पर्श से बचाव नहीं है, बल्कि यह उस मानसिकता की शिक्षा भी देता है जो इन तत्वों के प्रति श्रद्धा, संवेदना और आदर की भावना उत्पन्न करती है। यह व्यवहार शुद्धि, सामाजिक अनुशासन, और आंतरिक संस्कार का प्रतिबिंब है।