श्लोक ०७-१९

Chanakyaneeti Darpan by Acharya Chankya
शुनः पुच्छमिव व्यर्थं जीवितं विद्यया विना ।
न गुह्यगोपने शक्तं न च दंशनिवारणे ॥ ०७-१९
कुत्ते की पूंछ के समान व्यर्थ है ज्ञान बिना जीवन ।
न तो रहस्य छुपाना संभव है, न काटने से रोकना सम्भव ॥

यह श्लोक जीवन की अनमोल सच्चाई बताता है कि ज्ञान के बिना जीवन व्यर्थ है, जैसे कुत्ते की पूंछ जो व्यर्थ ही हिलती रहती है। यहाँ 'शुनः पुच्छमिव' रूपक के द्वारा जीवन की तुलना कुत्ते की पूंछ से की गई है, जो किसी काम की नहीं होती।

ज्ञान या विद्या से तात्पर्य यहाँ व्यवहारिक और आत्मज्ञानी ज्ञान से है, जो जीवन को सार्थक बनाता है। बिना ज्ञान के न तो अपने गुप्त रहस्यों को सुरक्षित रखा जा सकता है और न ही दूसरों के आक्रमण या हानि से बचा जा सकता है।

'न गुह्यगोपने शक्तं' का अर्थ है कि बिना विद्या के अपने गुप्त ज्ञान या योजना को छिपाना संभव नहीं है। क्योंकि बुद्धिमत्ता और समझ के बिना छिपाना कठिन होता है। 'न च दंशनिवारणे' का तात्पर्य है कि बिना ज्ञान के दूसरों के आक्रमण या चोट से बचाव करना भी असंभव है।

यह श्लोक आचार्य कौटिल्य की चाणक्यनीति दर्पण के सातवें अध्याय के अंश में आता है, जहाँ जीवन के व्यवहारिक पक्ष और विद्या के महत्व पर विशेष बल दिया गया है। जीवन को सफल, सुरक्षित और फलदायी बनाने के लिए ज्ञान अनिवार्य है।

व्यावहारिक रूप से, यह हमें समझाता है कि चाहे हम कितने भी संसाधन या शक्तिशाली हों, अगर हमारे पास ज्ञान नहीं है, तो हम अपने जीवन को संवार नहीं सकते। यह ज्ञान हमारे छुपे हुए संसाधनों की रक्षा करता है और किसी भी तरह के आघात से बचाव में सहायता करता है।