श्लोक ०७-१६

Chanakyaneeti Darpan by Acharya Chankya
स्वर्गस्थितानामिह जीवलोके चत्वारि चिह्नानि वसन्ति देहे ।
दानप्रसंगो मधुरा च वाणी देवार्चनं ब्राह्मणतर्पणं च ॥ ०७-१६
स्वर्ग में रहने वालों के समान, यहाँ जीवित जगत में शरीर में चार चिन्ह होते हैं।
दान देना, प्रसंग करना, मधुर वाणी बोलना, देवों की पूजा और ब्राह्मणों को तर्पण देना।

यह श्लोक जीवित संसार में मनुष्य के चार प्रमुख व्यवहारों या चिन्हों का वर्णन करता है जो स्वर्ग में निवास करने वालों के समान हैं। श्लोक के अनुसार, शरीर धारण किए हुए जीव में चार विशिष्ट गुण या कर्म चिन्ह के समान रहते हैं। इनका महत्व धार्मिक, सामाजिक और आध्यात्मिक दृष्टि से अत्यंत उच्च है।

प्रथम चिन्ह है 'दानप्रसंग' अर्थात् दान और सामाजिक मेलजोल। दान केवल वस्तु देने तक सीमित नहीं, बल्कि समाज में अपने उत्तरदायित्व को समझकर परोपकार करना और दूसरों के साथ संबंध बनाए रखना है। दान से मनुष्य का हृदय बड़ा होता है और समाज में उसका सम्मान बढ़ता है।

दूसरा है 'मधुरा वाणी'। मधुरता से कहा गया शब्द न केवल संवाद को प्रभावी बनाता है, बल्कि यह सामाजिक सौहार्द्र और मानसिक शांति का आधार भी है। कठोर या क्रोधित भाषा से विपरीत प्रभाव पड़ता है, जबकि मधुर वाणी से संबंध मधुर होते हैं और विवाद समाप्त होते हैं।

तीसरा है 'देवार्चन'। देवताओं की पूजा करना, उनकी स्तुति और सम्मान करना जीवन में आध्यात्मिक अनुशासन और श्रद्धा का सूचक है। यह मानव को नैतिकता और धर्म के पथ पर चलने के लिए प्रेरित करता है।

चतुर्थ और अंतिम है 'ब्राह्मणतर्पण'। यह ब्राह्मणों को भोजन, सम्मान या दान देना है, जो धार्मिक कृत्यों में ब्राह्मणों का विशेष स्थान दर्शाता है। यह सामाजिक व्यवस्था में धार्मिक संस्कारों का पालन सुनिश्चित करता है।

श्लोक का सन्दर्भ चाणक्यनीति दर्पण के सातवें अध्याय में है, जहाँ जीवन में व्यवहारिक और धार्मिक आचारों का महत्व बताया गया है। यह चारों चिन्ह मिलकर व्यक्ति के जीवन को पुण्य और समाज में प्रतिष्ठित बनाते हैं। इनका पालन व्यक्ति को स्वर्गोपम स्थिति प्रदान करता है।

इस प्रकार, यह श्लोक जीवन के चार महत्वपूर्ण व्यवहारों की ओर ध्यान आकर्षित करता है, जो न केवल सामाजिक और धार्मिक कर्तव्य निभाने में सहायक हैं, बल्कि व्यक्ति के आचरण और चरित्र को भी संवारते हैं। यह शिक्षा है कि जीवन में दान, मधुर वाणी, देवपूजा और ब्राह्मणतर्पण के बिना पूर्णता नहीं आती।