श्लोक ०७-१३

Chanakyaneeti Darpan by Acharya Chankya
यत्रोदकं तत्र वसन्ति हंसा- स्तथैव शुष्कं परिवर्जयन्ति ।
न हंसतुल्येन नरेण भाव्यं स्त्यजन्तः पुनराश्रयन्ते ॥ ०७-१३
जहाँ जल है, वहाँ हंस रहते हैं- उसी प्रकार जहाँ सुख है, वहाँ लोग सुख से दूर रहते हैं। हंस के समान योग्य व्यक्ति द्वारा त्याग किए हुए लोग फिर किसी ऐसे व्यक्ति के पास आश्रय नहीं लेते जो हंस के समान योग्य न हो।

इस श्लोक में प्रकृति और मनुष्य के स्वभाव के बीच एक सूक्ष्म समानता प्रस्तुत की गई है। जहाँ जल होता है, वहाँ हंस रहते हैं, क्योंकि हंस जल में ही अपने स्वाभाविक, सुचारु और सुकुमार जीवन को निर्विघ्न रूप से व्यतीत कर पाते हैं। दूसरी ओर, जल के अभाव में जीव जंतु शुष्क और असहज हो जाते हैं और जल की तलाश में विचलित रहते हैं। इस प्राकृतिक सत्य को मनुष्य जीवन के संदर्भ में अनुप्रयोगित करते हुए श्लोक बताता है कि जैसे हंस केवल जल के निकट ही निवास करते हैं, वैसे ही योग्य पुरुष के पास ही लोग आकर अपने संबंधों और आश्रयों को स्थापित करते हैं।

यहाँ 'हंस' शब्द का प्रयोग योग्य पुरुष के लिए हुआ है, जो अपने व्यवहार, ज्ञान, और चरित्र की दृष्टि से श्रेष्ठ हो। 'वस्तु' के रूप में जल का प्रतिनिधित्व है सुख और समृद्धि का। जब कोई पुरुष योग्य होता है, तब लोग उसकी शरण में आते हैं, क्योंकि वे उससे लाभ, संरक्षण और सम्मान प्राप्त कर सकते हैं।

इस श्लोक में यह भी बताया गया है कि यदि कोई व्यक्ति योग्य पुरुष के समान न हो, तो लोग उसके पास पुनः आश्रय नहीं लेते, अर्थात् वे उसके प्रभाव और संरक्षण को स्वीकार नहीं करते। यह व्यवहारिक दृष्टिकोण कौटिल्य के नीति दर्शन की एक महत्वपूर्ण समझ प्रस्तुत करता है कि योग्य नेतृत्व और योग्य व्यक्तित्व ही समाज और संबंधों के स्थायित्व का आधार है।

इस संदर्भ में, यह श्लोक नीति के उस सिद्धांत को पुष्ट करता है कि योग्य पुरुषों के प्रति सम्मान और उनकी संगति की आवश्यकता होती है। उनकी उपेक्षा या त्याग से लोग अन्यत्र आश्रय नहीं खोज पाते, क्योंकि वे केवल उन्हीं के साथ फलदायी संबंध स्थापित करना चाहते हैं जो काबिल और सम्मानित हों।

कौटिल्यनीति में इस प्रकार के श्लोक जीवन के व्यवहारिक और सामाजिक पक्षों की गहन समझ देते हैं। यहाँ ज्ञान और योग्यता के आधार पर सम्बंधों की स्थिरता, समृद्धि और सम्मान की चर्चा की गई है। व्यक्ति अपने काबिलियत और योग्यता के अनुसार ही समाज में अपना स्थान बना पाता है। जो योग्य नहीं होता, उसे लोग त्याग देते हैं और वह पुनः किसी योग्य पुरुष के प्रभाव में आने की कोशिश करता है, लेकिन यह संभव नहीं होता।