श्लोक ०७-१२

Chanakyaneeti Darpan by Acharya Chankya
नात्यन्तं सरलैर्भाव्यं गत्वा पश्य वनस्थलीम् ।
छिद्यन्ते सरलास्तत्र कुब्जास्तिष्ठन्ति पादपाः ॥ ०७-१२
बहुत अधिक सरल भाव से, ध्यानपूर्वक वनस्थली में जाकर देखो। वहाँ सरल वृक्ष टूट जाते हैं और कुब्जा (मुड़े हुए) पौधे खड़े रहते हैं।

यह श्लोक व्यवहार, दृष्टिकोण और संबंधों के संदर्भ में गहरे अर्थ रखता है। 'वनस्थली' यहाँ प्रतीक है उस वातावरण या परिस्थिति का जहाँ किसी व्यक्ति या वस्तु का आचरण या स्थिति परखा जाता है। सरल भाव का अर्थ है सीधा, स्पष्ट, बिना किसी छिपाव या छल-कपट के दृष्टिकोण से अवलोकन करना। जब हम ऐसे सीधे और स्पष्ट मनोभाव से किसी विषय का निरीक्षण करते हैं, तो असली स्थिति स्पष्ट होती है।

श्लोक में कहा गया है कि वनस्थली में जाते ही, सरल वृक्ष अर्थात जो वृक्ष सीधी और सरल आकृति के हैं, टूट जाते हैं। इसका आशय है कि जो वस्तुएँ या व्यक्ति अपनी सरलता, सीधेपन में असहज हैं, वे परिस्थितियों के दबाव या चुनौतियों में टूट जाते हैं। वहीं, कुब्जा अर्थात जो मुड़े हुए, विकृत या लचीले पौधे हैं, वे कठिनाइयों के सामने खड़े रहते हैं। इसका तात्पर्य यह है कि जीवन में स्थिरता, लचीलापन और अनुकूलनशीलता की महत्ता है। केवल सीधेपन और सरलता से बचना पर्याप्त नहीं होता, बल्कि परिस्थिति के अनुसार अपने आप को ढालना भी आवश्यक है।

चाणक्यनीति दर्पण के इस श्लोक में जीवन के संघर्षों में व्यवहार की सूक्ष्म समझ दी गई है। सीधेपन की उपेक्षा न करते हुए, लचीलापन और धैर्य का भी महत्व बताया गया है। व्यवहार में कभी-कभी कठोरता से बचते हुए अपने आपको परिस्थितियों के अनुसार मोड़ना चाहिए ताकि स्थायित्व बना रहे। यह नीति समाज और व्यक्तिगत जीवन दोनों के लिए महत्वपूर्ण निर्देश देती है।

श्लोक में वनस्थली का प्रयोग एक रूपक के रूप में हुआ है, जहाँ वृक्ष और पौधे व्यक्ति और उनकी प्रवृत्तियों का प्रतिनिधित्व करते हैं। सरल वृक्ष टूटना यह दिखाता है कि सीधेपन में कड़ा होना हर परिस्थिति में सफल नहीं होता। वहीं कुब्जा पौधा अपने विकृत रूप में भी जीवन संघर्षों में टिकता है। इस प्रकार, यह श्लोक हमें बताता है कि सफलता और स्थायित्व के लिए हमें परिस्थिति के अनुसार अपने स्वभाव और व्यवहार में लचीलापन रखना होगा।

अतः इस श्लोक का संदेश है कि अत्यंत सरल या कठोर व्यवहार से बेहतर है कि हम परिस्थितियों के अनुरूप अपने आपको ढालें, ताकि हम टूटने की बजाय टिक सकें। जीवन में इसी समायोजन और अनुकूलन की नीति को चाणक्यनीति में प्रमुखता दी गई है।