श्लोक ०७-११

Chanakyaneeti Darpan by Acharya Chankya
बाहुवीर्यं बलं राज्ञां ब्रह्मणो ब्रह्मविद्बली ।
रूपयौवनमाधुर्यं स्त्रीणां बलमनुत्तमम् ॥ ०७-११
राजाओं का बाहुबल और वीर्य; ब्राह्मण का बल और ब्रह्मज्ञान में बलवान होना; स्त्रियों का रूप, युवावस्था और माधुर्य — ये सब बल सर्वोत्तम हैं।

यह श्लोक कौटिल्य के चाणक्यनीति दर्पण के सातवें अध्याय के गूढ़ विवेचन का हिस्सा है, जो राजव्यवस्था, शक्ति, और समाज में विभिन्न वर्गों के बलों को परिभाषित करता है। इसमें बाहु, वीर्य, बल और ज्ञान के प्रकारों का विश्लेषण है, जो शासन और समाज में प्रत्येक वर्ग के महत्व को दर्शाते हैं।

‘बाहुवीर्यं बलं राज्ञां’ में राजाओं की शक्ति का अर्थ केवल शारीरिक बल नहीं, बल्कि बाहुबल तथा वीर्य का सम्मिलित स्वरूप है, जो साम्राज्य की रक्षा और विस्तार में अहम भूमिका निभाता है। राजाओं का बल वीर्य से संबंधित है, जो साहस, सामर्थ्य और युद्ध-कौशल का प्रतीक है।

‘ब्रह्मणो ब्रह्मविद्बली’ से यह संकेत मिलता है कि ब्राह्मण वर्ग का बल ज्ञान में है, विशेषकर ब्रह्म-विद्या में, जो उन्हें सामाजिक और आध्यात्मिक नेतृत्व प्रदान करता है। ब्रह्मविद्बली का अर्थ है, जो ब्रह्मविद्या में समर्थ है, ज्ञान की शक्ति जिससे वे नीति, न्याय, और समाज के नियम निर्धारित करते हैं।

‘रूपयौवनमाधुर्यं स्त्रीणां बलमनुत्तमम्’ इस वाक्यांश में स्त्रियों के बल को उनके रूप, युवावस्था और माधुर्य के रूप में परिभाषित किया गया है। यह बल शारीरिक या युद्ध-बल नहीं, बल्कि आकर्षण और सौंदर्य की शक्ति है, जो सामाजिक और पारिवारिक जीवन में उनकी भूमिका को सुदृढ़ बनाता है।

कुल मिलाकर यह श्लोक विभिन्न प्रकार की शक्तियों और बलों का वर्गीकरण करता है, जो शासन, सामाजिक संगठन और परिवार के विभिन्न पहलुओं को सुदृढ़ करते हैं। प्रत्येक वर्ग की विशिष्ट शक्ति समाज के सामंजस्य और स्थिरता के लिए अनिवार्य है।

यह श्लोक न केवल शक्ति के विभिन्न प्रकारों को समझाता है, बल्कि यह भी बताता है कि कैसे प्रत्येक शक्ति अपने-अपने क्षेत्र में सर्वोत्तम और आवश्यक है। यह नीति के अध्ययन में गहन अंतर्दृष्टि प्रदान करता है कि किस प्रकार विभिन्न बल समाज के समुचित कार्य और संरचना में योगदान करते हैं।