आत्मतुल्यबलं शत्रुं विनयेन बलेन वा ॥ ०७-१०
आत्मतुल्य (अपने समान) बल वाला व्यक्ति शत्रु होता है, उसे विनय या बल द्वारा हराया जा सकता है।
यह श्लोक शक्ति और रणनीति के संदर्भ में सामाजिक और राजनीतिक व्यवहार को स्पष्ट करता है। 'अनुलोम' अर्थात वह जो प्रवाह या धारा के अनुसार चलता है, यानी अनुकूल या सही मार्ग पर चलता हुआ व्यक्ति या शक्ति होती है। 'प्रतिलोम' का अर्थ है विपरीत दिशा में या गलत मार्ग पर, यहाँ दुर्जन के रूप में। यह बताता है कि जो व्यक्ति सही मार्ग और नियमों के अनुसार शक्ति का उपयोग करता है, वह चाहे कितना भी बलशाली हो, अनियमित या गलत मार्ग से शक्ति पाने वाले दुर्जन से श्रेष्ठ होता है।
अगले दो पंक्तियों में बताया गया है कि जो व्यक्ति अपने समान या तुल्यबल (समान शक्ति) वाला शत्रु हो, उसे या तो विनम्रता और संयम से हराया जा सकता है या फिर प्रत्यक्ष बल प्रयोग से। इसका आशय है कि समान शक्ति के शत्रु के प्रति व्यवहार में विवेक और संयम से कार्य लेना चाहिए, अन्यथा सीधा युद्ध भी आवश्यक हो सकता है।
यह श्लोक राजनीतिक और व्यक्तिगत दोनों स्तरों पर रणनीति का आधार देता है। उचित और नैतिक मार्ग अपनाकर अधिक शक्तिशाली दुर्जन को पराजित किया जा सकता है, और समान शक्ति वाले प्रतिद्वंद्वी के साथ व्यवहार में समझदारी व संयम जरूरी है।
चाणक्यनीति के इस अध्याय में ऐसे कई नियम दिये गए हैं जो शक्ति के सदुपयोग, संघर्ष और सहिष्णुता के बीच संतुलन बनाने में सहायक हैं। इस श्लोक का मूल संदेश यह है कि शक्ति का सही और नैतिक प्रयोग श्रेष्ठता की कुंजी है, और समान शक्ति वाले शत्रु से पार पाने के लिए दोनों विनय और शक्ति का संतुलित उपयोग आवश्यक है।