श्लोक ०७-०१

Chanakyaneeti Darpan by Acharya Chankya
अर्थनाशं मनस्तापं गृहे दुश्चरितानि च ।
वञ्चनं चापमानं च मतिमान्न प्रकाशयेत् ॥ ०७-०१
धन की हानि, मन का क्लेश, घर के दुश्चरित्र व्यवहार, छल और अपमान — बुद्धिमान व्यक्ति इनका प्रकाशन नहीं करता।

यह श्लोक व्यवहारिक जीवन में गोपनीयता और आत्मनियंत्रण की महत्ता को दर्शाता है। आचार्य चाणक्य द्वारा प्रस्तुत यह सूत्र बताता है कि विवेकशील व्यक्ति को अपने जीवन की कुछ बातों को सार्वजनिक नहीं करना चाहिए, चाहे वे कितनी भी गंभीर क्यों न हों।

‘अर्थनाशं’ यानी धन की हानि — आर्थिक हानि यदि हो जाए तो उसका ढिंढोरा पीटना समाज में आत्मसम्मान की हानि का कारण बन सकता है। दूसरे लोग इसका अनुचित लाभ उठा सकते हैं या फिर उपेक्षा की दृष्टि से देखने लगते हैं।

‘मनस्तापं’ यानी मानसिक पीड़ा — आंतरिक दुःख या मानसिक अशांति यदि सबके सामने रखी जाए, तो उससे व्यक्ति की दुर्बलता प्रकट होती है। समाज में अक्सर भावनात्मक दुर्बलता का उपयोग किसी के विरुद्ध किया जाता है। इसलिए मन के ताप को प्रकट करने से बचना चाहिए।

‘गृहे दुश्चरितानि’ — यदि घर में कोई चरित्रहीन या अनुचित आचरण हो रहा है, तो उसे बाहर उजागर करना पूरे परिवार की प्रतिष्ठा को चोट पहुँचा सकता है। पारिवारिक गोपनीयता बनाए रखना सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टि से आवश्यक माना गया है।

‘वञ्चनं’ — अपने साथ हुआ छल यदि आवश्यक न हो तो व्यक्त न करना ही श्रेयस्कर है। ऐसा करने से अन्य लोग आपको दुर्बल या मूर्ख समझ सकते हैं।

‘अपमानं’ — स्वयं के अपमान को भी हर किसी से साझा नहीं करना चाहिए, क्योंकि बार-बार उसे व्यक्त करने से आत्मसम्मान और गिरता है।

इन सभी बातों को उजागर करने से व्यक्ति की छवि, सम्मान और सामाजिक स्थिति प्रभावित होती है। चाणक्य यहाँ यह सिखा रहे हैं कि मानसिक संतुलन, सामाजिक बुद्धिमत्ता और आत्मसंयम के साथ जीवन जीने वाला व्यक्ति कभी अपने निजी कष्टों, हानियों और समस्याओं का प्रचार नहीं करता। शांति, विवेक और आत्मबल के साथ वह समय का सामना करता है।

यह श्लोक इस दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है कि आज के सामाजिक जीवन में लोग अक्सर अपनी बातों को अनावश्यक रूप से साझा कर देते हैं, जिससे उन्हें न केवल अपमान का सामना करना पड़ता है, बल्कि उनकी निर्णय क्षमता पर भी प्रश्न उठते हैं। यह सूत्र आत्मनियंत्रण, सामाजिक व्यवहार और आंतरिक शक्ति की शिक्षा देता है।