श्लोक ०६-२२

Chanakyaneeti Darpan by Acharya Chankya
य एतान्विंशतिगुणानाचरिष्यति मानवः ।
कार्यावस्थासु सर्वासु अजेयः स भविष्यति ॥ ०६-२२
जो मनुष्य ये बीस गुण धारण करेगा, वह सभी कार्यों की अवस्थाओं में अजेय होगा।

यह विषय अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह व्यक्तित्व विकास और कार्यक्षमता के विषय में स्पष्टता प्रदान करता है। "विंशतिगुण" का अर्थ है बीस विशेषताएँ या गुण, जिनका पालन या आचरण व्यक्ति में हो। शास्त्रीय दृष्टिकोण से, ये गुण व्यक्ति के संपूर्ण चरित्र और कर्मक्षमता के आधार होते हैं।

कर्मक्षेत्र में, विभिन्न परिस्थितियाँ और कार्य की अवस्थाएँ आती हैं—कठिनाइयाँ, विरोध, चुनौती, असफलता, भय, मनोवैज्ञानिक उतार-चढ़ाव, आदि। ये सभी मनुष्य को प्रभावित करते हैं। परंतु, यदि मनुष्य में ये बीस गुण पक्के और सशक्त रूप से विद्यमान हों, तो वह इन सभी परिस्थितियों में विजयी और अजेय रहेगा।

इसका तात्पर्य केवल शारीरिक बल से नहीं, अपितु मानसिक, बौद्धिक, नैतिक, और आध्यात्मिक दृढ़ता से है। यह दृढ़ता, एकाग्रता, धैर्य, विवेक, सत्यनिष्ठा, साहस, संयम, समयबद्धता, निर्णय क्षमता, और अन्य श्रेष्ठ गुणों के संयोजन से बनती है। ये गुण व्यक्ति को विभिन्न कार्यों के स्वरूप और समयानुसार सही ढंग से कार्य करने में समर्थ बनाते हैं।

शास्त्रों में चरित्रगुणों की महत्ता को बार-बार उजागर किया गया है, और इन्हें व्यक्ति की जीत और जीवन की सफलता का आधार माना गया है। यह श्लोक इस दृष्टि से कार्यों की विभिन्न अवस्थाओं में स्थिरता और सफलता के लिए व्यक्तित्व के समग्र विकास का महत्व बताता है।

सारतः, यह मूलभूत सत्य है कि गुणयुक्त मनुष्य अपने बाह्य और आंतरिक संघर्षों के समक्ष अडिग रहता है, और कार्यसाधना में अजेय होता है। इसलिए, व्यक्तिगत विकास के लिए गुणों का पोषण आवश्यक है, जो केवल ज्ञान या कौशल से नहीं, बल्कि चरित्र निर्माण से ही संभव होता है।