श्लोक ०६-२०

Chanakyaneeti Darpan by Acharya Chankya
बह्वाशी स्वल्पसन्तुष्टः सनिद्रो लघुचेतनः ।
स्वामिभक्तश्च शूरश्च षडेते श्वानतो गुणाः ॥ ०६-२०॥
बहु बोलने वाला, कम संतुष्ट रहने वाला, सुस्ती और नींद में डूबा हुआ, मन में हल्का और कमजोर, स्वामी के प्रति भक्तिभाव रखने वाला तथा बहादुर — ये छह गुण कुत्ते के समान हैं।

यहाँ वर्णित गुण एक व्यक्ति की कमजोर और अस्थिर प्रवृत्ति को दर्शाते हैं, जो बाह्य और आंतरिक दोनों रूपों में असंतोष और आलस्य से ग्रस्त होता है। बह्वाशी अर्थात् जो अत्यधिक बोलता है, उसका मन स्थिर नहीं रहता और विचारों में भी कमी होती है। स्वल्पसन्तुष्टः वह है जो कम-सी भी चीज़ से संतुष्ट नहीं होता, जिससे उसके मन में अस्थिरता और चिंता बनी रहती है। सनिद्रो का अर्थ है जो आलसी और सुस्ती में डूबा होता है, मनोबल कमजोर रहता है। लघुचेतनः व्यक्तित्व की कमजोर समझदारी और निर्णयक्षमता को सूचित करता है। स्वामिभक्तः वह है जो अपने स्वामी या वरिष्ठ के प्रति निष्ठावान होता है, किंतु यह गुण केवल एक पक्ष को दर्शाता है। शूरः वह व्यक्ति है जो साहसी होता है। ये छः गुण मिलकर उन व्यक्तियों की मानसिक और सामाजिक विशेषताएँ प्रकट करते हैं, जो अपने स्वभाव में कुत्ते जैसे होते हैं। 'श्वानतः गुणाः' का अर्थ है कुत्ते के गुण, जो स्वभाव से अस्थिर, अनुगामी, भयभीत या निराशाजनक हो सकते हैं। इस प्रकार, यह श्लोक चरित्र के विभिन्न पक्षों की सूक्ष्म विवेचना करता है और दर्शाता है कि मनुष्य के कुछ गुण स्वभावतः निम्न स्तर के हो सकते हैं, जो उसके आचरण और जीवन के व्यवहार में परिलक्षित होते हैं।

यह विचार नैतिकता और आचारशास्त्र के महत्वपूर्ण सिद्धांतों से जुड़ा है, जो व्यक्तित्व निर्माण में गुणों के स्थिर एवं संतुलित विकास पर बल देता है। अस्थिरता, असंतोष, आलस्य, और कमजोर बौद्धिकता के कारण व्यक्ति न केवल स्वयं असंतुष्ट रहता है, अपितु उसके निर्णय और कर्म भी प्रभावित होते हैं। इसके विपरीत, स्वामी के प्रति निष्ठा और साहस उसके कुछ सकारात्मक पक्षों को दर्शाते हैं। कुल मिलाकर, यह श्लोक चरित्र विज्ञान में मानसिक एवं सामाजिक गुणों के विभिन्न पहलुओं पर गहन दृष्टि प्रदान करता है।

अध्ययन में यह भी स्पष्ट होता है कि आचार्य कौटिल्य के दृष्टिकोण में व्यक्तित्व के ये गुण सामाजिक और नैतिक व्यवहार की कसौटी पर खरे उतरने की क्षमता का माप हैं। एक स्थिर, बुद्धिमान और संतुष्ट व्यक्ति के विपरीत, जिनमें ये छः गुण विद्यमान हैं, वे अधिकतर अस्थिर, असंतुष्ट तथा अल्पबुद्धि हो सकते हैं, जिससे सामाजिक व्यवहार और नीतिनिर्धारण प्रभावित होता है। अतः, इस विवेचना में आत्मनिरीक्षण और गुण सुधार की आवश्यकता भी निहित है।