श्लोक ०६-०२

Chanakyaneeti Darpan by Acharya Chankya
पक्षिणः काकश्चण्डालः पशूनां चैव कुक्कुरः ।
मुनीनां पापश्चण्डालः सर्वचाण्डालनिन्दकः ॥ ॥२॥
पक्षियों में कौआ चाण्डाल के समान है, पशुओं में कुत्ता चाण्डाल है; मुनियों में पापी वही है, जो सभी चाण्डालों की निन्दा करता है।
‘पाप’ शब्द के प्रयुक्त प्रयोग में सन्दर्भगत परिवर्तन इस श्लोक के गूढ़ भाव को उद्घाटित करता है। सामान्यतः चाण्डाल शब्द सामाजिक-धार्मिक पारिस्थितिकी में एक निम्नवर्ग के रूप में प्रकट होता है, जिसे पारम्परिक वर्णव्यवस्था में बहिष्कृत माना गया। किन्तु यह श्लोक एक चौंकाने वाला दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है—वह चाण्डाल नहीं, जो कौआ या कुत्ता है, बल्कि वह, जो चाण्डाल की निन्दा करता है। यह दृष्टिकोण किसी भी सामाजिक संरचना के मूल्यांकन की प्रक्रिया में निहित नैतिक तत्त्वों पर प्रकाश डालता है। कौआ—जो चपल, धूर्त, और अवसरवादी प्रकृति का पक्षी माना जाता है—को पक्षियों में चाण्डाल कहा गया; कुत्ता—जो यदा-कदा गंदगी में लिप्त रहता है, पशुओं में चाण्डाल कहा गया। इन उपमाओं द्वारा श्लोक यह स्पष्ट करता है कि ‘निम्नता’ कोई स्थिर जातिगत अवधारणा नहीं है, अपितु यह व्यवहारगत लक्षणों और गुणधर्मों से निर्धारित होती है। यथार्थ ‘पाप’ तब प्रकट होता है जब कोई व्यक्ति दूसरों की सामाजिक स्थिति या मूल पर आधारित निन्दा करता है। मुनि—जो आत्मनिग्रह, शुद्धता और तत्त्वज्ञान के प्रतीक होते हैं—उनके मध्य वही सबसे बड़ा पतित कहा गया है जो चाण्डालों की निन्दा करता है। इस प्रकार, आत्मिक पतन का मापदण्ड बाह्य क्रिया नहीं, अपितु आन्तरिक दृष्टिकोण और आचरण का होता है। यह विचार सामाजिक नैतिकता के क्षेत्र में एक मौलिक दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है। श्लोक का अन्तिम चरण यह चेतावनी देता है कि सामाजिक संरचनाओं में उच्चता केवल व्यवहार, ज्ञान या तप से आती है, न कि वंश, जाति या जन्म से। ‘निन्दा’—विशेषतः उन व्यक्तियों की, जिन्हें पहले से ही समाज ने हाशिए पर रखा है—एक प्रकार का नैतिक अपराध है, जो स्वयं व्यक्ति के तपस्वी स्वरूप को दूषित करता है। इस व्याख्या से यह भी स्पष्ट होता है कि जो व्यक्ति चाण्डाल की निन्दा करता है, वह स्वयं अपने भीतर की चाण्डालता का उद्घाटन करता है। यह दर्शन एक गहन आत्मपरीक्षण की माँग करता है—हम किसी को क्यों तुच्छ मानते हैं? क्या यह हमारी दृष्टि की अपवित्रता नहीं दर्शाता? सामाजिक श्रेष्ठता का दम्भ ही सबसे बड़ा चाण्डालत्व है। सारतः, चाण्डालत्व कोई वंशानुगत कलङ्क नहीं, बल्कि मानसिक दृष्टिकोण का परिणाम है। जिसे समाज 'नीच' कहता है, उसका अपमान करनेवाला ही वस्तुतः आध्यात्मिक दृष्ट्या 'पतनशील' होता है।