वायसात्पञ्च शिक्षेच्च षट्शुनस्त्रीणि गर्दभात् ॥ ॥१५॥
बुद्धिमान के लिए जीवन का प्रत्येक प्राणी एक शिक्षक बन सकता है, यदि उसमें ज्ञान ग्रहण करने की दृढ़ इच्छा हो। ऐसा कोई विशेषाधिकार नहीं कि केवल ग्रन्थ या गुरु ही शिक्षा प्रदान करें—प्रकृति और जीवों का अवलोकन भी उतना ही गूढ़ पाठ प्रस्तुत कर सकता है। जब एक सिंह शिकार करता है, तो वह चाहे जितना भी छोटा लक्ष्य क्यों न हो, उसे पूरी शक्ति से प्राप्त करता है—यह पूर्ण संकल्प और तत्परता का पाठ है। बगुला, जल के किनारे अचल खड़ा प्रतीक्षा करता है, उसका संयम और अवसर की प्रतीक्षा करने की कला, ध्यान और विवेक का पाठ है। मुर्गा, ब्रह्ममुहूर्त में जागता है, नियमित दिनचर्या निभाता है, संकट में साहस दिखाता है, परिवार की रक्षा करता है और सन्तोषी भी रहता है—इससे क्रम, अनुशासन, कर्तव्यनिष्ठा, वीरता तथा संतोष का सन्देश मिलता है।
कौआ चोरी करता है परन्तु सजग रहता है, समय को पहचानता है, अनुकूल अवसर में प्रविष्ट होता है, साहसपूर्वक आक्रमण करता है और संकट से भागना जानता है—इन सभी से बुद्धिमत्ता, अवसरबुद्धि और आत्मरक्षा की शैली सीखी जा सकती है। कुत्ता, स्वामी के प्रति निष्ठावान होता है, थोड़ा पाकर भी संतुष्ट रहता है, संकट में रक्षा करता है, निद्रा में लीन होता है पर अल्प शब्द में सजग हो उठता है, स्वामी के लिए अपना जीवन अर्पण कर देता है—इसमें सेवा, कृतज्ञता, सजगता, त्याग और विश्वास की शिक्षा है। गधा, भारी बोझ ढोता है पर कभी शिकायत नहीं करता, परिश्रम में लीन रहता है, धैर्यशील होता है और तिरस्कार सहते हुए भी निरंतर कार्य करता रहता है—यह सहनशीलता, श्रमनिष्ठा और अहंविहीनता का उदाहरण है।
इन सभी गुणों में एक ऐसी अन्तर्दृष्टि है जो मानवीय चरित्र निर्माण के लिए अत्यन्त उपयोगी है। आज के समाज में जहाँ अनुशासनहीनता, अधैर्य, अवसर की अवमानना, कृतघ्नता और अहंकार व्याप्त है, वहाँ इन छोटे जीवों के व्यवहार में निहित शिक्षा स्मरणीय है। यह दृष्टिकोण केवल नैतिक अनुशासन की बात नहीं करता, बल्कि जीवन की यथार्थ राजनीति—व्यक्तित्व निर्माण, संघर्ष की रणनीति, सामयिक बुद्धिमत्ता, कर्तव्यबुद्धि और सहनशीलता—को गहराई से समेटे है।
विचारणीय यह है कि क्या आधुनिक मानव इन सहज शिक्षाओं के प्रति उतना सजग है जितना होना चाहिए? क्या उसके लिए 'सीखना' अब केवल औपचारिक शिक्षा बनकर रह गया है? जब तक 'शिक्षा' का अर्थ केवल शास्त्रों और पाठ्यक्रमों में सीमित रहेगा, तब तक यह बोध नहीं जागेगा कि वास्तविक जीवन ही सर्वोत्तम विद्यालय है—और हर जीव, हर क्षण, हर अनुभव एक शिक्षक। सीखना तब ही सार्थक होता है जब हम स्वयं को शिष्य मानने का साहस रखें।