अल्पबीजं हतं क्षेत्रं हतं सैन्यमनायकम् ॥ ०५-०७॥
कम बीज वाला खेत और नेतृत्वहीन सेना विनाश के समान हैं।
यह श्लोक जीवन में तीन प्रकार के महत्वपूर्ण संसाधनों—विद्या, धन, तथा शक्ति—के क्षय और उनके प्रभावों पर गहन चिंतन प्रस्तुत करता है। पहले पद में, आलस्य से ग्रस्त विद्या का अर्थ है कि जब ज्ञान या शिक्षा का प्रयोग किया न जाए, या वह निष्क्रिय होकर बेकार हो, तो वह वास्तव में मूल्यहीन बन जाती है। विद्या का सार उसका प्रयोग है, और यदि वह आलस्य के कारण निष्क्रिय रह जाए, तो वह ना केवल अपने स्वामी के लिए लाभकारी नहीं रहती, बल्कि उसके नाश का कारण भी बनती है। इसी प्रकार, धन यदि स्वंय के नियंत्रण से बाहर, किसी पराये के अधीन चला जाए तो वह भी व्यर्थ और असुरक्षित हो जाता है। धन का मूल्य उसके उचित उपयोग में है, और यदि वह दूसरों के हाथ में चला जाए, तो उसका संरक्षण और वृद्धि असंभव हो जाती है।
दूसरे पद में, अल्पबीज वाला खेत और बिना नेता की सेना का उदाहरण दिया गया है, जो अपने-अपने क्षेत्र में विफलता और नाश का प्रतीक हैं। अल्पबीज वाला खेत पर्याप्त उपज नहीं देता, जिससे कृषि या आर्थिक समृद्धि संभव नहीं होती। यह उस प्रकार के प्रयास की उपमा है जिसमें मूल कारणों की उपेक्षा की जाती है, जैसे कि आवश्यक संसाधनों या समय की कमी। बिना नेता की सेना भी विफलता के लिए अभिशप्त होती है, क्योंकि नेतृत्व का अभाव सामरिक रणनीति, अनुशासन और सामूहिक एकता को बाधित करता है, जिससे वह असंगठित और कमजोर हो जाती है। नेतृत्व सेना की आत्मा है, और उसके बिना उसका अस्तित्व संकट में पड़ जाता है।
समग्रतः, श्लोक जीवन के तीन आधारभूत स्तंभों—ज्ञान, धन, और शक्ति/संघटन—की उचित रक्षा और प्रबंधन की आवश्यकता को उद्घाटित करता है। आलस्य और असावधानी इनके नाश का कारण बनते हैं। यह श्लोक नीतिशास्त्र के उस दृष्टिकोण को प्रकट करता है जिसमें संसाधनों के संरक्षण, उनके उचित नियंत्रण, और नेतृत्व की अनिवार्यता को अत्यंत गंभीरता से लिया जाता है। आधुनिक संदर्भों में भी, यह संदेश प्रासंगिक है—शिक्षा का सही प्रयोग, धन का सही प्रबंधन, और संगठनों या समूहों में सुदृढ़ नेतृत्व के बिना सफलता असंभव है।
दार्शनिक दृष्टि से, यह श्लोक अस्तित्व के उन मूल तत्त्वों को संबोधित करता है जो किसी भी सामाजिक या व्यक्तिगत व्यवस्था के स्थायित्व के लिए आवश्यक हैं। विद्या, धन, और सेना (शक्ति) का नाश जीवन में असफलता, अव्यवस्था, और पतन की ओर ले जाता है। अतः, इनके संरक्षण में सतर्कता और सक्रियता अपरिहार्य हैं।