तथा चतुर्भिः पुरुषः परीक्ष्यते त्यागेन शीलेन गुणेन कर्मणा ॥ ०५-०२
ठीक उसी प्रकार व्यक्ति की परीक्षा चार प्रकार से होती है—त्याग से, चरित्र से, गुण से और कर्म से।
यहां सोने की परीक्षा के चार भौतिक और कठोर उपायों—निघर्षण (रगड़), छेदन (काटना), ताप (गर्मी देना), तथा ताड़ना (मारना)—का उदाहरण देकर जीवन और मनुष्य के आचरण की परीक्षा के समानांतर रखा गया है। सोना, जो मूल्यवान और दुर्लभ है, इन कष्टों से गुजरने के बाद ही अपनी शुद्धता और गुणवत्ता दिखाता है। इसी प्रकार, मनुष्य का वास्तविक मूल्य उसके त्याग, चरित्र, गुण, और कर्म द्वारा निर्धारित होता है।
त्याग का आशय है अनावश्यक इच्छाओं, स्वार्थ या लोभ का परित्याग, जो आत्मसंयम और उच्चतर लक्ष्य की ओर अग्रसर करता है। चरित्र अर्थात् शील व्यक्ति की नैतिक और सामाजिक प्रतिष्ठा को दर्शाता है; यह स्थिर आचार और सदाचार का परिचायक होता है। गुण व्यक्ति के स्वभाव, नैतिकताएँ, और मानसिक आदर्श होते हैं, जो उसके जीवन के आधार को संवारते हैं। कर्म से अभिप्राय हैं व्यक्ति के कार्य, व्यवहार और सामाजिक उत्तरदायित्व, जो उसके व्यक्तित्व का द्योतक होते हैं।
इस प्रकार, केवल बाहरी या भौतिक परीक्षण ही नहीं, अपितु आंतरिक तथा सामाजिक मापदंडों से भी मनुष्य की परीक्षा होती है। ये चारों तत्व समन्वित होकर व्यक्ति की पूर्णता और श्रेष्ठता को परिभाषित करते हैं। जीवन में निरंतर संघर्ष और परीक्षाओं के माध्यम से ही व्यक्ति की असली गुणवत्ता प्रकट होती है, जैसे सोना अपनी शुद्धता से चमकता है।
दार्शनिक दृष्टि से, यह श्लोक मनुष्य को सतत आत्मपरीक्षा और सुधार के लिए प्रेरित करता है। ज्ञान, विवेक, और सद्गुणों के विकास के बिना कोई व्यक्ति पूर्ण नहीं हो सकता। कार्य और चरित्र की परीक्षा जीवन में सफलता और समाज में सम्मान के लिए अनिवार्य हैं। इस प्रकार, यह जीवन की विविध परीक्षा विधियों का दार्शनिक विवेचन प्रस्तुत करता है, जो मनुष्य के आंतरिक और बाह्य गुणों का संतुलन स्थापित करता है।