सत्येन वाति वायुश्च सर्वं सत्ये प्रतिष्ठितम् ॥ ०५-१९
सत्य के कारण वायु चलती है, और सम्पूर्ण संसार सत्य पर ही आधारित है।
सत्य का तत्व समस्त जगत की आधारशिला है। पृथ्वी का स्थायित्व सत्य के बिना संभव नहीं, क्योंकि स्थिरता का भाव सत्य के अभाव में क्षणभंगुर होता है। सूर्य की ऊष्मा, जो जीवनदायिनी है, सत्य के कारण ही संतुलित और सम्यक् रूप से कार्य करती है। यदि सत्य न हो तो ताप अत्यधिक अथवा न्यून हो सकता है, जिससे प्रकृति असंतुलित हो जाती है। इसी प्रकार वायु का प्रवाह भी सत्य पर आधारित है, अर्थात् नियम और व्यवस्था से संचालित होता है। वायु की गति अनियमित होती तो जीवन और प्रकृति की समग्र क्रियाएं बाधित होतीं।
सर्वं सत्ये प्रतिष्ठितम्—इस कथन में सम्पूर्ण सृष्टि के नियम, क्रियाएं, गुण, और कर्तव्य सत्य की उपस्थिति में ही स्थिर और व्यवस्थित हैं। सत्य के बिना अस्तित्व की कोई ठोसता नहीं, न नियमों का पालन संभव। यह दर्शन शास्त्रीय विचारों से मेल खाता है, जहाँ सत्य को सर्वोच्च तत्त्व माना जाता है जो जगत के संचालन का आधार है। यह आदर्श केवल आचार, नीति या वचन में ही नहीं, बल्कि प्रकृति के नियमों में भी व्याप्त है। सत्य का संरक्षण और पालन सामाजिक, प्राकृतिक और आध्यात्मिक सभी स्तरों पर आवश्यक है, ताकि सृष्टि सुचारु रूप से फलति-फूलति रहे।
प्रकृति विज्ञान के दृष्टिकोण से भी यह वाक्यांश सत्य को उस नियमन के रूप में देखता है जो विश्व के भौतिक और जैविक तंत्रों को संतुलित करता है। मनुष्यों के लिए यह नीतिशास्त्र की शिक्षा भी देता है कि सत्य के बिना न तो जीवन स्थिर रह सकता है और न ही सामाजिक व्यवस्था सुचारु। सत्य की उपेक्षा से विनाश, अराजकता और पतन निश्चित हैं। अतः सत्य न केवल आदर्श रूप में, बल्कि क्रियात्मक रूप में भी समस्त सृष्टि के लिए आधार है।