श्लोक ०५-१४

Chanakyaneeti Darpan by Acharya Chankya
तृणं ब्रह्मविदः स्वर्गस्तृणं शूरस्य जीवितम् ।
जिताशस्य तृणं नारी निःस्पृहस्य तृणं जगत् ॥ ॥५-१४॥
ब्रह्मज्ञ के लिए स्वर्ग तृण के समान है। वीर के लिए जीवन तृण के समान है। विजय प्राप्त व्यक्ति के लिए नारी तृण के समान है। इच्छारहित व्यक्ति के लिए जगत् तृण के समान है।

इस श्लोक में 'तृण' अर्थात तिनके की सूक्ष्मता और अस्थिरता के माध्यम से चार महत्वपूर्ण सामाजिक और दार्शनिक विषयों का विवेचन है। ब्रह्मविद अर्थात जो ब्रह्म की सच्ची समझ रखते हैं, उनके लिए स्वर्ग की महत्ता तृण के समान है, जिसका अर्थ है कि स्वर्ग जैसी भौतिक या सांसारिक चीज़ें उनके लिए बहुत ही असार और क्षणभंगुर हैं। वे आध्यात्मिक सत्य की प्राप्ति में लीन होते हैं, इसलिए भौतिक सुख उनकी दृष्टि में नगण्य हैं।

शूर अर्थात वीर के लिए जीवन भी तृण के समान है, यह शौर्य और पराक्रम की नश्वरता और अस्थिरता को दर्शाता है। वीर की मृत्यु या जीवन का मूल्य केवल तत्कालीन क्रियाओं और कार्यों में निहित होता है, परंतु अंततः जीवन भी क्षणिक और नश्वर है।

जिताशय अर्थात जिसने अपनी इच्छाओं पर विजय प्राप्त कर ली है, उसके लिए नारी (जो इस श्लोक में वासनाओं या मोह का प्रतीक भी हो सकती है) तृण के समान है। यह वासना या मोह से परे उठे हुए व्यक्ति की स्थिति दर्शाता है जहाँ सांसारिक मोह-वासनाएं नष्ट हो चुकी हैं और उनके लिए उनका कोई महत्व नहीं रहता।

अन्त में, निष्पृह अर्थात जो सांसारिक वस्तुओं और भावनाओं से विरक्त है, उसके लिए जगत् तृण के समान है। इसका अर्थ है कि सम्पूर्ण संसार के आकर्षण, मोह, और बाधाएँ एक तिनके के समान क्षणिक और निरर्थक हैं। इस प्रकार, संसार के प्रति सच्चा वैराग्य और असंबद्धता जीवन का परम लक्ष्य है।

श्लोक की दृष्टि से यह मनुष्य के जीवन के विभिन्न अवस्थाओं और दृष्टिकोणों का सूक्ष्म दर्शन प्रस्तुत करता है, जो साधना के विभिन्न स्तरों के अनुरूप है। प्रत्येक अवस्था में भौतिकता, साहस, मोह, और वैराग्य के भिन्न-भिन्न महत्व को तृण की रूपकात्मक सूक्ष्मता से स्पष्ट किया गया है। इस प्रकार, यह श्लोक जीवन की क्षणभंगुरता, इच्छाओं की अस्थिरता, और संसार की नश्वरता पर गहन ध्यानाकर्षण कराता है।

विविध दर्शनशास्त्रों में वैराग्य को परम आध्यात्मिक लक्ष्य माना गया है, जो संसार के भ्रमों से मुक्ति दिलाता है। इस श्लोक में भी वैराग्य को अंतिम और सर्वोच्च स्थिति के रूप में प्रस्तुत किया गया है, जो मनुष्य को वास्तविक मुक्ति और शांति प्रदान करता है।