श्लोक ०५-११

Chanakyaneeti Darpan by Acharya Chankya
दारिद्र्यनाशनं दानं शीलं दुर्गतिनाशनम् ।
अज्ञाननाशिनी प्रज्ञा भावना भयनाशिनी ॥ ०५-११॥
गरीबी नाश करने वाला दान है, और दुर्दशा नाश करने वाला शील है। अज्ञान का नाश करने वाली प्रज्ञा है, तथा भय का नाश करने वाली भावना है।

श्लोक में समाहित तत्वज्ञान सामाजिक, नैतिक, और मानसिक जीवन के विविध पक्षों पर आधारित है। प्रथमः दानम्, जो दारिद्र्य का नाशक है, केवल भौतिक या आर्थिक सहायता ही नहीं, अपितु वह मनुष्यों के जीवन में सहायतापरक एवं सहृदयता की भावना को भी व्यक्त करता है। दान से व्यक्तिः न केवल निर्धनता से उबरता है, अपितु सामाजिक बन्धन दृढ़ होते हैं। अतः दान को दारिद्र्यनाशन कहा गया है, क्योंकि इससे व्यक्ति की निर्धनता समाप्त होकर आत्मसंतोष और सामाजिक स्वीकृति मिलती है।

द्वितीयः शीलम्, अर्थात् चारित्रिक गुण, जो दुर्गतिनाशक है। 'दुर्गति' से तात्पर्य मानसिक, नैतिक, तथा सामाजिक पतन से है। शील के अभाव में मनुष्य अपथगामी होता है, किन्तु शीलवान् व्यक्ति अपनी आचरणसिद्धि से अपकार और दुष्प्रवृत्तियों से बचता है। अतः शील दुर्गतिनाशिनी है।

तृतीयः प्रज्ञा, जो अज्ञान का नाश करती है। अज्ञान केवल पुस्तकीय या सामान्य जानकारी का अभाव न होकर जीव के अंधकारमय स्थिति का सूचक है, जो संशय, भ्रांतियों और अशुद्ध सोच का कारण बनता है। प्रज्ञा से तात्पर्य केवल बौद्धिक चेतना ही नहीं, अपितु समग्र विवेक, अनुशासन और तत्त्वदृष्टि है। यह विवेक अज्ञान को दूर कर मनुष्य को सत्पथ पर ले जाता है।

अन्ततः भावना, जो भय का नाश करती है। भय सामान्यतः अनिश्चितता, अभाव, तथा असुरक्षा से उत्पन्न होता है। भावना के रूप में यहाँ अभिप्रेत है वह मानसिक स्थिति या चित्तधारा जो स्थिरता, विश्वास और साहस उत्पन्न करती है। जब मनुष्य में सकारात्मक भावना जाग्रत होती है, तो भय का नाश होता है। यह भावना भय को समाप्त कर जीवन में निश्चयता और साहस का संचार करती है।

इस प्रकार चारों तत्व जीवन की विभिन्न समस्याओं के समाधान हैं—दान से आर्थिक समस्या, शील से नैतिक पतन, प्रज्ञा से बौद्धिक अज्ञान, और भावना से मानसिक भय का नाश संभव होता है। यह दृष्टि जीवन के बहुआयामी विकास और समुन्नति की ओर संकेत करती है।