श्लोक ०४-०६

Chanakyaneeti Darpan by Acharya Chankya
एकोऽपि गुणवान्पुत्रो निर्गुणेन शतेन किम् ।
एकश्चन्द्रस्तमो हन्ति न च ताराः सहस्रशः ॥ ०४-०६॥
एक गुणवान् पुत्र निर्गुण पुत्र से शतगुण श्रेष्ठ होता है, क्योंकि एक चन्द्रमा तमस को नष्ट कर देता है, न कि सहस्र तारे।

इस श्लोक में गुणवान् पुत्र की महत्ता पर गहन दार्शनिक दृष्टि प्रकट होती है। गुण, यथा सदाचार, बुद्धि, नैतिकता, धर्म आदि, मानवीय जीवन की गुणवत्ता और सामाजिक कल्याण के मूल आधार हैं। एक गुणवान् पुत्र सम्पूर्ण परिवार और समाज में उजियारा फैलाता है, जैसे एक चन्द्रमा तमस (अंधकार) को दूर करता है।

निर्गुण अर्थात् गुणों से रहित पुत्र, जो नैतिक, बौद्धिक या संस्कारात्मक गुणों से वंचित होता है, वह शतगुणों की संख्या से भी कम मूल्यवान होता है। केवल संख्यात्मक वृद्धि या मात्राअनुपात से कुछ लाभ नहीं, बल्कि गुणात्मक श्रेष्ठता आवश्यक है।

चन्द्रमा और तारे की उपमा से स्पष्ट होता है कि एक श्रेष्ठ तत्व हजारों निम्नतम तत्वों से श्रेष्ठ होता है। यहाँ चन्द्रमा प्रकाश और ज्ञान का प्रतीक है, जो तमस अर्थात् अज्ञान और अंधकार को समाप्त करता है। तारे संख्या में अधिक होते हुए भी अंधकार को दूर करने में अक्षम हैं।

यह तत्त्व दार्शनिक, नैतिक तथा सामाजिक जीवन में गुणवत्ता की आवश्यकता को रेखांकित करता है। संख्यात्मकता से ऊपर गुणवत्ता, सद्गुणों से समृद्धि और श्रेष्ठता की सिद्धि होती है। व्यक्तित्व विकास, नैतिक शिक्षा और सामाजिक उत्तरदायित्व में गुणों की महत्ता इस प्रकार सिद्ध होती है।

प्राचीन नीति शास्त्रों में गुणों को जीवन का आधार माना गया है, और इस श्लोक द्वारा उस विचार को संक्षिप्त एवं प्रभावशाली रूप में प्रस्तुत किया गया है। एक श्रेष्ठ गुणवान् पुत्र सम्पूर्ण परिवार के लिए प्रकाश का स्तंभ होता है, जो संपूर्ण सामाजिक तंत्र के विकास में सहायक होता है।