ये च तैः सह गन्तारस्तद्धर्मात्सुकृतं कुलम् ॥ ०४-०२
समाज और परिवार में परस्पर सम्बद्ध संबंधों का स्थायित्व और विकास धर्म के पालन पर निर्भर होता है। श्लोक यह प्रतिपादित करता है कि साधु व्यक्तियों से सम्बन्धित पुत्र, मित्र तथा बन्धु अपने नैतिक कर्तव्य और धर्म के अनुसार परिपूर्ण होकर पलायन करते हैं। यह पलायन केवल शारीरिक दूर होने के लिए नहीं, अपितु सही मार्ग पर चलने के लिए आवश्यक बदलाव और त्याग को सूचित करता है। जो व्यक्ति इनके साथ चलते हैं, वे धर्म के प्रति समर्पित होकर अपने कुल का कल्याण करते हैं, अर्थात् परिवार, समाज तथा कुल की प्रतिष्ठा और उत्थान के लिए कार्य करते हैं। यहाँ धर्म केवल धार्मिक अनुष्ठान या विधि ही नहीं, बल्कि सामाजिक न्याय, नैतिकता, सत्यनिष्ठा और न्यायसंगत आचार का समष्टिगत रूप है।
परंपरागत सामाजिक तन्त्र में, परिवार और कुल की समृद्धि तथा सामाजिक व्यवस्था का आधार धर्म के अनुकूल आचरण है। पुत्र, मित्र तथा बन्धु इन तीनों सम्बंधों का प्रतिनिधित्व करते हैं—जो व्यक्ति संबंधों के साथ जुड़े हैं वे जब धर्म के अनुसार जीवन व्यतीत करते हैं, तो वे समाज के कल्याण का कारण बनते हैं। धर्म का पालन केवल व्यक्तिगत नैतिकता तक सीमित न रहकर सामाजिक उत्तरदायित्वों को निभाना भी है। इसलिए, जो व्यक्ति धर्म के प्रति सचेत होकर जीवन में श्रेष्ठता की ओर अग्रसर होते हैं, वे अपने कुल की प्रतिष्ठा में वृद्धि करते हैं।
इस श्लोक का दार्शनिक तात्पर्य यह है कि धार्मिक और नैतिक मूल्यों का पालन व्यक्ति को और उसके सामाजिक परिवेश को मजबूत बनाता है। यह पारिवारिक, सामाजिक और व्यक्तिगत जीवन के संतुलन और सामंजस्य के लिए अनिवार्य है। जब पुत्र, मित्र तथा बन्धु साधुजन के मार्ग का अनुसरण करते हैं, तो वे न केवल अपने बल्कि अपने कुल के कल्याण के लिए भी उत्तरदायी बन जाते हैं। धर्म की उपासना और उसका आचरण समस्त सामाजिक जीवन के आधार को स्थिर करता है, जिससे कुल की समृद्धि और उन्नति सुनिश्चित होती है।
वर्तमान संदर्भ में, यह श्लोक न केवल पारंपरिक धार्मिक कर्तव्यों की चर्चा करता है, बल्कि जीवन के सामाजिक, नैतिक एवं आध्यात्मिक पक्षों के समन्वय का संदेश भी देता है। व्यक्ति यदि धर्म की साधना करता है, तो उसके संबंध भी उससे प्रभावित होते हैं तथा समाज में सकारात्मक परिवर्तन संभव होते हैं। यह संस्कारों की महत्ता, सामाजिक नैतिकता और व्यक्ति के चारित्रिक विकास को उद्घाटित करता है, जो समग्र मानव जीवन की उच्चतर गुणवत्ता हेतु आवश्यक है।