श्लोक ०४-१८

Chanakyaneeti Darpan by Acharya Chankya
कः कालः कानि मित्राणि को देशः कौ व्ययागमौ ।
कश्चाहं का च मे शक्तिरिति चिन्त्यं मुहुर्मुहुः ॥ ०४-१८॥
कौन-सा समय है? कौन-कौन से मित्र हैं? कौन-सा देश है? कौन-कौन से व्यय (खर्च) होंगे?
मैं कौन हूँ और मेरी क्या-सी शक्ति है? यह बार-बार चिंतित होने वाला विषय है।

समय (काल), मित्र, देश, व्यय (खर्च), स्वयं की पहचान और क्षमता की चिंताएँ मनुष्य के जीवन के सबसे महत्वपूर्ण और निरंतर विचारणीय विषय हैं। समय की अनिश्चितता और गतिशीलता के कारण प्रत्येक निर्णय समय के अनुरूप होना आवश्यक है। मित्रों का चयन और उनके व्यवहार का ज्ञान सफलता और विफलता के बीच के अंतर को निर्धारित करता है। देश अर्थात् परिवेश, सामाजिक और राजनीतिक वातावरण भी योजना निर्माण और निर्णय लेने में निर्णायक भूमिका निभाता है। व्यय या संसाधनों का प्रबंधन यथार्थवादी और विवेकपूर्ण होना चाहिए, अन्यथा नाश और हानि हो सकती है। स्वयं की शक्ति और क्षमता की समझ बिना सतत चिन्तन और आत्मावलोकन के संभव नहीं। इस प्रकार, इन छह तत्वों—काल, मित्र, देश, व्यय, स्वयं और शक्ति—का ज्ञान और सावधानीपूर्वक विचार किसी भी नीति या रणनीति के लिए आधारभूत है। बार-बार इन पर विचार करना मनुष्य को वर्तमान परिस्थिति की वास्तविकता का बोध कराता है तथा भविष्य की उचित योजना निर्माण में सहायक होता है। इस श्लोक में नीति के निर्धारण और कार्यान्वयन में गहन चिन्तन की आवश्यकता व्यक्त होती है, जो दार्शनिक दृष्टि से मनोवैज्ञानिक और व्यवहारिक दोनों पक्षों को स्पर्श करता है।

काल समय की अपरिहार्य गतिशीलता को सूचित करता है, जो अवसर और संकट दोनों लाता है। मित्र केवल सहयोगी ही नहीं, वरन् विश्वास और नीति की कसौटी भी हैं। देश न केवल भौगोलिक सीमाएं, अपितु सामाजिक, सांस्कृतिक, और राजनीतिक कारकों का समुच्चय है, जो कार्यक्षमता को प्रभावित करता है। व्यय में साधनों की सीमा और उनकी उपयुक्तता समाहित है, जो सफलता की कुंजी है। अंतःकरण की समीक्षा और शक्ति की पहचान के बिना कार्यों में असफलता संभव है। नीति और निर्णय की श्रेष्ठता इसी चिंतन में निहित है। इस प्रकार, यह श्लोक नीति निर्माण में विवेकपूर्ण स्वावलोकन और तात्कालिक परिस्थितियों का पूर्ण मूल्यांकन आवश्यक बताता है।