भिद्यते वाक्य-शल्येन अदृशं कण्टकं यथा ॥ ॥०३-०७॥
जीवन में कुछ प्रकार के लोग ऐसे होते हैं जिनसे निपटने का पारंपरिक तरीका काम नहीं आता। मूर्ख व्यक्ति एक ऐसा ही प्रकार है, जिसे प्रत्यक्ष रूप से दो पैरों वाला पशु माना गया है। यह उपमा उसकी बुद्धिहीनता और तर्कहीन व्यवहार को रेखांकित करती है। पशु के पास विवेक नहीं होता, वह अपनी प्रवृत्ति के अनुसार चलता है, और अक्सर खतरनाक हो सकता है। उसी तरह, मूर्ख व्यक्ति के साथ तर्क, संवाद, या समझाने का प्रयास अक्सर व्यर्थ होता है। उनकी सोच सीमित होती है, वे तथ्यों को स्वीकार नहीं करते, और अपने पूर्वाग्रहों में दृढ़ रहते हैं।
उनकी यह विशेषता उन्हें 'वाक्य-शल्य' अर्थात् वाणी के तीखे बाणों से भी अप्रभेद्य बना देती है। जिस प्रकार अदृश्य कांटा त्वचा में चुभता है और दर्द देता है, उसी प्रकार मूर्ख की बातें या कार्य अप्रत्याशित रूप से चोट पहुँचा सकते हैं, लेकिन आप सीधे उसका सामना करने में अक्सर असमर्थ होते हैं क्योंकि उनके पास तर्क का अभाव होता है। वे आपकी बातों को समझेंगे नहीं, उन्हें तोड़-मरोड़ देंगे, या पूरी तरह से अनदेखा कर देंगे। यह उन्हें उन लोगों से भिन्न करता है जो दुर्भावनापूर्ण होते हैं लेकिन तर्क के प्रति संवेदनशील होते हैं। दुर्जन को तर्क या दंड से नियंत्रित किया जा सकता है, लेकिन मूर्ख को नहीं।
इसलिए, मूर्ख व्यक्ति के साथ व्यवहार करने का सबसे प्रभावी तरीका यह है कि उनसे दूरी बनाए रखी जाए या जहाँ तक संभव हो, उनसे बचा जाए। उन पर तर्क के 'बाण' चलाने का कोई लाभ नहीं, क्योंकि वे उन्हें समझने या उनसे प्रभावित होने में असमर्थ होते हैं। उनसे उलझना अपने समय, ऊर्जा और मानसिक शांति को बर्बाद करना है। यह समझना आवश्यक है कि हर व्यक्ति तर्क और बुद्धि के प्रति ग्रहणशील नहीं होता, और कुछ लोगों के साथ संवाद स्थापित करने का प्रयास स्वयं को कष्ट पहुँचाना है। मूर्ख के साथ बहस करना दीवारों से टकराने जैसा है।
यह सिद्धांत केवल व्यक्तिगत संबंधों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि सामाजिक और राजनीतिक संदर्भों में भी लागू होता है। जब सत्ता या प्रभाव वाले पदों पर मूर्ख व्यक्ति होते हैं, तो उनके निर्णय तर्कहीन और विनाशकारी हो सकते हैं। उनसे बहस करने या उन्हें समझाने की कोशिशें अक्सर विफल होती हैं, जिससे अराजकता और अस्थिरता उत्पन्न होती है। ऐसी परिस्थितियों में, नीति यह सिखाती है कि मूर्खता का मुकाबला प्रत्यक्ष संघर्ष से नहीं, बल्कि उसे दरकिनार करके, या उसके प्रभाव को सीमित करके ही किया जा सकता है।
यह समझना भी महत्वपूर्ण है कि मूर्खता कोई बीमारी नहीं जिसे इलाज से ठीक किया जा सके। यह बुद्धि की एक मूलभूत कमी है जो अक्सर हठधर्मिता और अहंकार के साथ आती है। इसलिए, ऐसे व्यक्ति को बदलने का प्रयास करना निरर्थक है। स्वीकारोक्ति और अनुकूलन ही उनसे निपटने के सर्वोत्तम तरीके हैं। जैसे अदृश्य कांटे से बचने के लिए सावधानी से चला जाता है, वैसे ही मूर्ख व्यक्ति से बचने के लिए सतर्क रहना चाहिए।