श्लोक ०३-०५

Chanakyaneeti Darpan by Acharya Chankya
एतदर्थे कुलीनानां नृपाः कुर्वन्ति सङ्ग्रहम् ।
आदिमध्यावसानेषु न ते गच्छन्ति विक्रियाम् ॥ ०३-०५॥
इसी उद्देश्य से कुलीन राजा लोगों को एकत्र करते हैं; आरम्भ, मध्य और अंत — तीनों स्थितियों में वे विचलित नहीं होते।

राजनीति और नेतृत्व में स्थिरता और असंदिग्धता सर्वोपरि गुण हैं। कोई भी राजा जब किसी नीति या योजना को अपनाता है, तो उसकी सफलता इस पर निर्भर करती है कि वह आरम्भ से लेकर अंत तक कितनी दृढ़ता और स्पष्टता से उस पर अमल करता है। कुलीन अर्थात उच्च चरित्र और वंश परंपरा से आने वाले राजा केवल जनसमूह को इकट्ठा करने या सत्ता विस्तार के लिए यह नहीं करते, बल्कि वे नीति, मर्यादा और धर्म के उद्देश्य से ऐसा करते हैं।

ऐसे नेता परिस्थितियों से प्रभावित होकर बार-बार अपनी नीतियाँ नहीं बदलते। न वे शुरू में अति उत्साही होकर अनुचित निर्णय लेते हैं, न मध्य में भ्रमित होकर विचलित होते हैं, और न ही अंत में परिणामों के भय से पीछे हटते हैं। उनका लक्ष्य स्थायी होता है और उसका पीछा वे निर्भीक होकर करते हैं।

यह गुण केवल वंश या कुल की विशेषता से नहीं आता, बल्कि गहन शिक्षा, नीति-बुद्धि और आत्मानुशासन का परिणाम होता है। सत्ता में बैठा व्यक्ति अगर हर स्थिति में मानसिक संतुलन बनाए रखे और विक्षोभ से बचा रहे, तो उसकी नीतियाँ दीर्घकालिक और समाजोपयोगी सिद्ध होती हैं। लेकिन यदि कोई राजा आरंभ में उत्साहवश योजनाएँ बनाता है और बाद में बाधाओं से डरकर उसे त्याग देता है, तो वह न केवल स्वयं विफल होता है, बल्कि प्रजा की आस्था भी खो देता है।

विकृति में जाना — चाहे वह नीति से विचलन हो, या भावनात्मक अस्थिरता — नेतृत्व की कमजोरी है। नीति के क्षेत्र में जिनकी संकल्प शक्ति अडिग होती है, वे ही यथार्थ में सफल नेतृत्व कर सकते हैं। उनकी संगति और संगठन का आधार सच्चा उद्देश्य होता है, न कि अस्थायी स्वार्थ।

प्रभावशाली नेतृत्व का मूल्यांकन केवल उसके द्वारा लिए गए निर्णयों से नहीं, बल्कि उन निर्णयों की निरंतरता और संकल्पबद्धता से होता है। नीति में अनिश्चितता, भावुकता या दबाव में आकर लिए गए निर्णय दीर्घकालिक हानि पहुंचाते हैं। जो राजा या नेता आरम्भ, मध्य और अंत — तीनों स्थितियों में बिना विचलन के खड़े रहते हैं, वही समाज में स्थायित्व, विश्वास और न्याय स्थापित कर सकते हैं।