दाम्पत्ये कलहो नास्ति तत्र श्रीः स्वयमागता ॥ ०३-२१ ॥
समृद्धि, स्थायित्व और कल्याण केवल बाहरी साधनों के संचय से प्राप्त नहीं होते, बल्कि कुछ मूलभूत आंतरिक और सामाजिक स्थितियों पर निर्भर करते हैं। जिस समाज या गृहस्थी में अज्ञान, अविवेक और मूर्खता का सम्मान होता है, वह प्रगति नहीं कर सकता। मूर्खों को महत्व देना, चाहे वह सत्ता में हो या समाज के किसी भी क्षेत्र में, गलत निर्णयों, संसाधनों के अपव्यय और अराजकता को जन्म देता है। ज्ञान, विवेक और योग्यता का सम्मान ही सही दिशा में बढ़ने की पहली शर्त है। जहाँ बुद्धिमानों की बात सुनी जाती है और मूर्खों को उनके स्थान पर रखा जाता है, वहाँ सकारात्मक वातावरण बनता है।
दूसरा महत्वपूर्ण तत्व है भौतिक संसाधनों का समुचित प्रबंधन और संचय। केवल धन कमा लेना पर्याप्त नहीं है; उसे विवेकपूर्ण तरीके से सञ्चित और सुरक्षित रखना भी आवश्यक है। धान्य या धन का संचय भविष्य की अनिश्चितताओं से निपटने की तैयारी, सुरक्षा की भावना और आगे बढ़ने के लिए आवश्यक पूंजी का प्रतीक है। यह दर्शाता है कि उस स्थान पर योजनाबद्ध तरीके से कार्य होता है, अपव्यय नहीं किया जाता, और भविष्य की चिंता की जाती है। यह भौतिक आधार प्रदान करता है जिस पर समृद्धि की इमारत खड़ी होती है।
तीसरा और संभवतः सबसे सूक्ष्म लेकिन शक्तिशाली कारक है आंतरिक सामंजस्य, विशेष रूप से पारिवारिक जीवन में शांति और सद्भाव। दाम्पत्य जीवन में कलह का न होना एक स्थिर और सहायक वातावरण का निर्माण करता है। परिवार समाज की सबसे छोटी इकाई है, और यदि यह इकाई ही संघर्षग्रस्त हो तो व्यक्ति अपनी ऊर्जा को उत्पादक कार्यों में लगाने के बजाय आंतरिक कलह सुलझाने में व्यय करता है। अशांत गृहस्थी मन की शांति भंग करती है, निर्णय लेने की क्षमता कमजोर करती है और व्यक्ति को अंदर से खोखला कर देती है। जहाँ पति-पत्नी के बीच प्रेम, समझ और सहयोग होता है, वहाँ मानसिक शांति होती है, एक-दूसरे का संबल मिलता है और बाहरी दुनिया का सामना करने की शक्ति आती है।
ये तीनों स्थितियाँ—ज्ञान का सम्मान, संसाधनों का प्रबंधन और आंतरिक शांति—एक दूसरे से गहराई से जुड़ी हुई हैं। मूर्खता का अनादर और ज्ञान का सम्मान सही प्रबंधन के लिए विवेक प्रदान करता है। सुरक्षित संसाधन आंतरिक तनावों को कम करने में सहायक होते हैं। और पारिवारिक शांति व्यक्तियों को ज्ञानार्जन और प्रबंधन पर ध्यान केंद्रित करने का अवसर देती है। जब ये स्थितियाँ एक साथ आती हैं, तो समृद्धि (श्री) को बाहर से लाने का प्रयास नहीं करना पड़ता; वह स्वतः ही उस स्थान की ओर आकर्षित होती है। यह एक चुम्बकीय प्रभाव की तरह है जहाँ अनुकूल परिस्थितियाँ अपने आप सकारात्मक परिणामों को आकर्षित करती हैं। यह केवल भौतिक धन नहीं है, बल्कि समग्र कल्याण, सौभाग्य और फलने-फूलने की अवस्था है जो ऐसे वातावरण में स्वाभाविक रूप से प्रकट होती है।