श्लोक ०३-२०

Chanakyaneeti Darpan by Acharya Chankya
धर्मार्थकाममोक्षाणां यस्यैकोऽपि न विद्यते ।
अजागलस्तनस्येव तस्य जन्म निरर्थकम् ॥ ॥०३-२०॥
धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष इन चारों में से यदि किसी एक का भी ज्ञान किसी व्यक्ति को नहीं होता है, तो उसके लिए उसकी जन्मभूमि अजंगल अर्थात जंगली स्थान के समान निरर्थक है।

मनुष्य के जीवन में धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष ये चार उद्देश्य नितांत आवश्यक हैं। धर्म जीवन की नैतिक नींव है जो समाज और व्यक्तिगत आचरण को निर्देशित करती है। अर्थ भौतिक साधन और समृद्धि का आधार है, जो जीवन निर्वाह और सामाजिक कर्तव्यों के लिए आवश्यक है। काम जीवन की इच्छाओं और आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व करता है, जो मनुष्य को जीवन में सक्रिय और उद्देश्यपूर्ण बनाता है। मोक्ष अंतिम लक्ष्य है, जो जीवन के चक्र से मुक्ति और आत्मिक शांति प्रदान करता है।

यदि किसी व्यक्ति के पास इन चारों में से कम से कम एक का भी ज्ञान न हो, तो उसका जन्म उसी प्रकार है जैसे अजंगल में पैदा होना — एक ऐसी जगह जो जीवन के विकास, संरक्षण और उन्नति के लिए असहायक हो। अजंगल जहां जंगली, असहाय और अनियंत्रित वातावरण का प्रतीक है, वहाँ जीवन का उद्देश्यहीन और व्यर्थ होना स्वाभाविक है।

यह एक कठोर सत्य है कि केवल भौतिक या केवल आध्यात्मिक ज्ञान से जीवन पूर्ण नहीं होता; यदि धर्म, अर्थ, काम या मोक्ष में से किसी एक की भी समझ नहीं, तो जीवन दिशा-हीन और व्यर्थ सिद्ध होता है। इस संदर्भ में 'अजंगल' का प्रयोग प्रतीकात्मक है जो जीवन के लक्ष्यहीनता और निरर्थकता को दर्शाता है।

यहाँ प्रश्न उठता है कि जीवन के चारों लक्ष्य क्यों आवश्यक हैं? क्या एक लक्ष्य के बिना जीवन अधूरा है? धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष — ये एक-दूसरे से पृथक नहीं, बल्कि परस्पर पूरक हैं। धर्म बिना अर्थ और काम के अधूरा, अर्थ बिना धर्म के अधार्मिक, काम बिना धर्म और अर्थ के निरर्थक और मोक्ष बिना इन तीनों के प्राप्ति के बिना असम्भव है।

इस प्रकार यह जीवन के व्यापक और समग्र दृष्टिकोण को रेखांकित करता है जहाँ जीवन की चार भिन्न-भिन्न परतें एक-दूसरे के पूरक हैं। एक व्यक्ति जो इन चारों में से किसी का भी ज्ञान या अनुभव नहीं रखता, वह जीवन के उद्देश्य से अनभिज्ञ और अस्तित्व में व्यर्थ है।

व्यवहारिक दृष्टि से भी, जिनके पास धर्म का ज्ञान नहीं होता, वे नैतिकता और सामाजिक नियमों से विमुख रहते हैं; जो अर्थ का ज्ञान नहीं रखते वे जीवन के भौतिक संसाधनों के अभाव में जीवन का प्रबंध नहीं कर पाते; जो काम को नहीं समझते वे इच्छाओं और जीवन ऊर्जा से वंचित रहते हैं; और जो मोक्ष की समझ नहीं रखते वे अंततः जीवन के चक्र से मुक्ति के बिना अनंत संघर्ष में फंसे रहते हैं।

इसलिए यह ज्ञान एक न्यूनतम आवश्यकता के समान है, जिसके बिना जीवन का कोई स्थायी और सार्थक उद्देश्य नहीं रह जाता।