श्लोक ०३-१३

Chanakyaneeti Darpan by Acharya Chankya
को हि भारः समर्थानां किं दूरं व्यवसायिनाम् ।
को विदेशः सुविद्यानां कः परः प्रियवादिनाम् ॥ ॥१३॥
सामर्थ्यवान के लिए क्या बोझ है? प्रयत्नशील के लिए क्या दूर है? विद्वानों के लिए क्या विदेश है? मधुर वाणी बोलने वालों के लिए कौन पराया है?

जीवन की सीमाएँ अक्सर हमारी मानसिकता, दृष्टिकोण और कर्मशीलता पर निर्भर होती हैं, न कि बाहरी परिस्थितियों पर। जब व्यक्ति में सामर्थ्य होता है — शारीरिक, मानसिक या आत्मिक — तो वह किसी भी चुनौती को सहजता से उठा सकता है। उसके लिए कोई कार्य 'भार' नहीं होता, क्योंकि उसका अंतःकरण उसे उस कार्य से दबाता नहीं, बल्कि प्रेरित करता है। वह थकता नहीं, वह उठता है। वह रुकता नहीं, वह आगे बढ़ता है।

उसी प्रकार, जो व्यक्ति निरंतर प्रयास करता है — वह चाहे किसी भी क्षेत्र में हो — उसके लिए कोई भी लक्ष्य दूर नहीं होता। दूरी केवल आलस्य और असंयम के लिए एक समस्या है, प्रयत्नशील के लिए नहीं। एक व्यवसायी या साधक अपनी चेतना को लक्ष्य तक पहुँचाने के लिए जो निष्ठा रखता है, वह दूरी को एक बिंदु मात्र बना देता है। वह यात्रा का मर्म समझता है, और दूरी उसकी साधना को बाधित नहीं कर सकती।

शिक्षा केवल ज्ञान का संकलन नहीं है; वह अंतरराष्ट्रीय सीमाओं को मिटाने वाली शक्ति है। जो सच्चा ज्ञानी है, उसके लिए कोई स्थान 'विदेश' नहीं होता। वह जहाँ भी जाता है, वहाँ उसकी विद्या, उसका विवेक, और उसका सद्व्यवहार उसे अपनाया हुआ बना देते हैं। विद्या उस दीपक के समान है जो अंधकार में भी आत्मीयता का प्रकाश उत्पन्न कर देती है। जब किसी के भीतर विद्या रच-बस जाती है, तो भौगोलिक दूरियाँ अर्थहीन हो जाती हैं।

मधुर वाणी बोलना केवल एक सामाजिक कला नहीं, बल्कि मानवीय जुड़ाव की एक आध्यात्मिक प्रक्रिया है। जो व्यक्ति सभी से प्रिय वचन बोलता है, वह विरोध की दीवारों को पिघलाकर संबंधों की नई भूमियाँ तैयार करता है। उसके लिए कोई भी 'पराया' नहीं रहता, क्योंकि उसका व्यवहार, उसकी भाषा, और उसकी संवेदना उसे हर हृदय में स्थान दिला देती है। प्रियवाणी वह चाबी है जो हृदय के बंद दरवाज़े भी खोल देती है — और इसीलिए उसके लिए 'पराया' नाम की कोई श्रेणी नहीं होती।

यह चारों प्रश्न एक ही सत्य को उद्घाटित करते हैं: सीमाएँ केवल तब तक सीमाएँ हैं जब तक व्यक्ति अपने भीतर की क्षमता, प्रयास, विद्या और मधुरता से उन्हें नहीं लांघता। जो इन गुणों से संपन्न है, उसके लिए कोई रुकावट रुकावट नहीं रहती, कोई दूरी दूरी नहीं रहती, कोई स्थान अपरिचित नहीं रहता, और कोई मनुष्य पराया नहीं रहता।