श्लोक ०२-०४

Chanakyaneeti Darpan by Acharya Chankya
ते पुत्रा ये पितुर्भक्ताः स पिता यस्तु पोषकः ।
तन्मित्रं यत्र विश्वासः सा भार्या यत्र निर्वृतिः ॥ ॥०२-०४॥
वे पुत्र ही हैं जो पिता के प्रति श्रद्धालु और भक्त हैं; वह पिता ही है जो परिवार का पालन-पोषण करता है। जो मित्र वहाँ विश्वास करता है, वही मित्र है; और जो पत्नी वहाँ परन्तु शान्ति और व्याकुलता रहित जीवन देती है, वही पत्नी है।

परिवार तथा सामाजिक सम्बन्धों के स्वरूप का विवेचन यहाँ किया गया है, जहाँ पुत्र, पिता, मित्र और पत्नी की भूमिकाओं का तात्पर्य उनके गुणों और कर्तव्यों के संदर्भ में स्पष्ट किया गया है। पुत्र की परिभाषा केवल रक्तसंबंध से नहीं, बल्कि पिता के प्रति श्रद्धा और भक्तिभाव से होती है। इससे यह विचार उद्घाटित होता है कि पारिवारिक सम्बन्धों का सार भौतिक संबंधों से अधिक भावात्मक और नैतिक समर्थन में निहित है। पिता को केवल आनुवंशिक स्रोत न मानकर, परिवार का पोषक और पालनकर्ता माना गया है, जो परम्परागत दृष्टिकोण से उस पुरुष की भूमिका को परिभाषित करता है जो परिवार की समृद्धि, सुरक्षा और संस्कारों का दायित्व वहन करता है।

मित्रता का मर्म यहाँ विश्वास से परिभाषित है, जो पारस्परिक भरोसे और वचनबद्धता पर आधारित है। मित्र वही है जो सच्चे विश्वास के साथ संबंध निभाता है, जिससे मित्रता की गुणवत्ता और स्थायित्व निर्धारित होता है।

भार्या (पत्नी) का गुण उसके द्वारा निर्मित निर्वृत्ति में निहित है, अर्थात वह शान्ति, सहजता और व्याकुलता रहित वातावरण प्रदान करती है। यह विचार परिवार में पत्नी की भूमिका को मानसिक और भावनात्मक स्थिरता प्रदान करने वाले के रूप में प्रस्तुत करता है, जो गृहस्थ जीवन की समृद्धि के लिए आवश्यक है। निर्वृत्ति का भाव केवल शारीरिक अथवा सामाजिक शान्ति नहीं, अपितु मनःस्थिति की स्वच्छता और सामंजस्य भी है।

सारतः, ये परिभाषाएँ पारंपरिक परिवार और सामाजिक संबंधों की विशिष्ट भूमिकाओं को उनकी आंतरिक गुणवत्ता और नैतिक मूल्य के आधार पर परिभाषित करती हैं। ये विचार सामाजिक संरचना में सद्भाव, विश्वास, और भक्ति को आधार मानते हैं, जो परस्पर संबंधों की गहनता और सच्चाई को स्थापित करते हैं। इस दृष्टि से, केवल बाह्य संबंध ही नहीं, अपितु आंतरिक गुण और कर्तव्य भी परिवार और समाज के निर्माण में प्रधान भूमिका निभाते हैं।

ऐसे अध्ययन में दार्शनिक और सामाजिक मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से परिवार और मित्रता की मूल अवधारणाओं पर पुनः विचार किया जाना आवश्यक है, जो न केवल परंपरागत मान्यताओं का संवर्धन करता है, बल्कि मानवीय संबंधों की जटिलताओं और गहनताओं को भी समझने में सहायता करता है।