श्लोक ०२-२०

Chanakyaneeti Darpan by Acharya Chankya
समाने शोभते प्रीतिः राज्ञि सेवा च शोभते ।
वाणिज्यं व्यवहारेषु दिव्या स्त्री शोभते गृहे ॥ ॥०२-२०॥
समान स्तर वालों में प्रेम शोभा देता है, राजा की सेवा शोभा देती है। व्यवहार में व्यापार शोभा देता है, दिव्य स्त्री घर में शोभा देती है।

सामाजिक और मानवीय सम्बन्धों की जटिलता में सामंजस्य और औचित्य का सिद्धांत जीवन के हर पहलू पर लागू होता है। प्रेम का वास्तविक सौंदर्य और उसकी सार्थकता दो समान स्तर के व्यक्तियों के बीच ही प्रकट होती है। 'समान स्तर' का अर्थ केवल सामाजिक या आर्थिक स्थिति से नहीं है, बल्कि इसमें मानसिक, बौद्धिक, भावनात्मक और आध्यात्मिक समता भी निहित है। जब दो व्यक्ति विचारों, मूल्यों और जीवन के प्रति दृष्टिकोण में समान होते हैं, तभी उनके बीच का प्रेम स्वाभाविक, स्थिर और शोभायमान बनता है। असमानता, चाहे वह किसी भी रूप में हो, सम्बन्धों में तनाव और असंतुलन पैदा करती है, जिससे प्रेम अपनी शुद्धता और सौंदर्य खो देता है। यह समता एक दूसरे के प्रति सम्मान, समझ और स्वीकार्यता की नींव रखती है, जिस पर एक स्वस्थ और स्थायी सम्बन्ध का निर्माण होता है।

सत्ता या अधिकार के साथ सम्बन्ध एक अलग प्रकार की मर्यादा और व्यवहार की मांग करता है। राजा की सेवा में 'शोभा' का अर्थ केवल आज्ञापालन नहीं है, बल्कि यह निष्ठा, समर्पण, विवेक और कुशलता का संयोजन है। राजा या राज्य की सेवा करने वाले व्यक्ति का व्यवहार ऐसा होना चाहिए जो उसकी पद की गरिमा और राज्य के हित के अनुरूप हो। इसमें चाटुकारिता या अनैतिक साधन शामिल नहीं होते। सच्ची सेवा वह है जो राज्य को मजबूत करे, जनता का कल्याण सुनिश्चित करे और सेवक की अपनी ईमानदारी और क्षमता को भी प्रदर्शित करे। राजा की सेवा में लगे व्यक्ति का आचरण उसके चरित्र और राज्य के प्रति उसकी वास्तविक प्रतिबद्धता का दर्पण होता है। इस प्रकार की सेवा न केवल राजा को प्रसन्न करती है, बल्कि सेवक को भी समाज में प्रतिष्ठा और सम्मान दिलाती है, जो स्वयं में एक शोभा है।

आर्थिक गतिविधियों के केंद्र, व्यापार में, व्यवहार की शुचिता और कुशलता उसकी शोभा होती है। व्यापार केवल वस्तुओं और सेवाओं का आदान-प्रदान नहीं है, बल्कि यह मानवीय सम्बन्धों और विश्वास का ताना-बाना है। व्यवहार में व्यापार का शोभायमान होना उसकी पारदर्शिता, ईमानदारी, निष्पक्षता और ग्राहकों तथा साझेदारों के प्रति सम्मान पर निर्भर करता है। जहाँ लेन-देन में छल, कपट या अन्याय होता है, वहाँ व्यापार अपनी नैतिकता और विश्वसनीयता खो देता है। कुशल व्यवहार का अर्थ केवल आर्थिक लाभ कमाना नहीं है, बल्कि यह दीर्घकालिक सम्बन्धों का निर्माण, सद्भावना स्थापित करना और एक ऐसी प्रतिष्ठा बनाना है जिस पर लोग विश्वास कर सकें। यह विश्वास और प्रतिष्ठा ही व्यापार की वास्तविक पूंजी और उसकी शोभा है। एक व्यापारी का व्यवहार उसके व्यापार की आत्मा को दर्शाता है।

गृहस्थ जीवन की सुंदरता और स्थिरता में स्त्री की भूमिका केन्द्रीय होती है। 'दिव्या स्त्री' का वर्णन केवल शारीरिक आकर्षण तक सीमित नहीं है, बल्कि यह उसके आंतरिक गुणों, ज्ञान, विवेक, स्नेह, धैर्य और परिवार के प्रति उसके समर्पण को दर्शाता है। एक सद्गुणी, समझदार और स्नेही स्त्री घर को केवल चारदीवारी से कहीं अधिक बनाती है; वह उसे एक सुरक्षित, प्रेमपूर्ण और समृद्धिशाली आश्रय बनाती है। घर की व्यवस्था, बच्चों का पालन-पोषण, पारिवारिक सदस्यों के बीच सामंजस्य बनाए रखना, और कठिन समय में सहारा बनना – ये सभी कार्य एक स्त्री के दिव्य गुणों से ही शोभा पाते हैं। घर की शोभा उस भौतिक धन-सम्पत्ति से नहीं होती, जितनी कि उसमें रहने वाले लोगों, विशेषकर स्त्री के गुणों और आचरण से होती है। एक दिव्य स्त्री घर को संस्कार, संस्कृति और स्थिरता प्रदान करती है, जो उसकी वास्तविक शोभा है।

ये चारों दृष्टांत जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में उचित व्यवहार और सम्बन्धों के महत्व को रेखांकित करते हैं। वे बताते हैं कि हर संदर्भ में सफलता और सौन्दर्य केवल बाहरी दिखावे या क्षणिक लाभ में नहीं है, बल्कि वह आंतरिक गुणवत्ता, नैतिक मूल्यों और सही आचरण में निहित है। समानता, निष्ठा, ईमानदारी और सद्गुण – ये वे आधारशिलाएं हैं जिन पर प्रेम, सेवा, व्यापार और गृहस्थ जीवन की वास्तविक शोभा टिकी होती है। जब व्यक्ति इन सिद्धांतों का पालन करता है, तो वह न केवल अपने जीवन को समृद्ध करता है, बल्कि समाज में भी सकारात्मक योगदान देता है।