यन्मैत्री क्रियते पुंभिर्नरः शीघ्रं विनश्यति ॥ ०२-१९॥
व्यक्ति के चरित्र, दृष्टिकोण और आवास का उसके जीवन और पतन में अत्यंत महत्त्व है। दुराचारी अर्थात जो आचरण में पथभ्रष्ट, दुष्ट और अनैतिक हो, वह स्वयं के लिए तथा उसके आस-पास के लोगों के लिए हानिकारक होता है। ऐसे व्यक्ति के साथ मित्रता करना स्वयं को संकट में डालने के समान है।
दुरादृष्टि का तात्पर्य है जिसकी दृष्टि और मनसा में पाप, द्वेष और दुर्भावना हो। दृष्टि केवल शारीरिक नहीं, बल्कि मनोवैज्ञानिक और भावात्मक होती है। ऐसी नकारात्मक दृष्टि रखने वाला व्यक्ति दूसरों के लिए अनुकूल नहीं होता, क्योंकि उसकी नकारात्मक सोच कार्यों में भी प्रकट होती है।
दुर्जन का निवास स्थान भी उसके चरित्र के समान प्रभावशाली होता है। यदि कोई दुष्ट व्यक्ति अस्वच्छ, असामाजिक या नैतिकता से परे आवास में रहता है, तो उसका प्रभाव अधिक विनाशकारी होता है। आवास केवल भौतिक स्थान नहीं, बल्कि मानसिक और सामाजिक वातावरण का प्रतिनिधित्व करता है।
मित्रता का तात्पर्य केवल बाहरी सम्बंध से नहीं, बल्कि आत्मीय और विश्वासपात्र संबंध से है। यदि ऐसा संबंध दुराचारी, दुरादृष्टि और दुर्जन के साथ हो तो वह व्यक्ति शीघ्र ही क्षति, संकट या विनाश के मार्ग पर चला जाता है। मित्रता का चयन चरित्र, दृष्टि और आवास के आधार पर किया जाना चाहिए।
मित्रता में सावधानी आवश्यक है क्योंकि मित्रता के माध्यम से व्यक्ति का चरित्र, व्यवहार और सामाजिक प्रतिष्ठा प्रभावित होती है। दुष्ट और नकारात्मक लोगों के संग रहने से व्यक्ति की प्रतिष्ठा घटती है, मनोबल कमजोर होता है, और अंततः वह जीवन में असफल हो जाता है।
इस प्रकार, अपने परिवेश, मित्रों और आवास की गुणवत्ता पर सतर्क रहना अत्यावश्यक है। दुराचारी, दुरादृष्टि और दुर्जन के साथ मित्रता, स्वयं के विनाश का कारण बनती है। इसलिए विवेक और सतर्कता के साथ मित्रता करनी चाहिए।