श्लोक ०२-१३

Chanakyaneeti Darpan by Acharya Chankya
श्लोकेन वा तदर्धेन तदर्धार्धाक्षरेण वा ।
अबन्ध्यं दिवसं कुर्याद्दानाध्ययनकर्मभिः ॥ ॥०२-१३॥
एक श्लोक, आधा श्लोक, उसका भी आधा या केवल एक अक्षर के माध्यम से भी — किसी भी प्रकार से — दान, अध्ययन या शुभ कर्मों द्वारा दिन को निष्फल न जाने दे।

जीवन का प्रत्येक दिन एक अमूल्य अवसर है जो कभी लौटकर नहीं आता। समय की इस अनमोलता को समझना आत्मविकास की दिशा में पहला कदम है। ऐसा कोई भी दिन जो न तो दान, न अध्ययन, और न ही किसी शुभ कर्म में व्यतीत हुआ हो, वह व्यर्थ चला गया माना जाता है। यह केवल कर्मशीलता की बात नहीं है, बल्कि उस जीवन-दृष्टि की भी है जो हर क्षण को सार्थक और पूज्य मानती है।

यह विचार आधुनिक उपभोगवादी प्रवृत्तियों के विपरीत है, जहाँ समय को 'बिताने' की वस्तु समझा जाता है, न कि 'उपयोग' या 'उन्नयन' का साधन। यहाँ केवल बड़े-बड़े कार्यों की बात नहीं की जा रही, बल्कि यह संकेत है कि जीवन में सूक्ष्मतम प्रयास भी महत्व रखते हैं—चाहे वह एक श्लोक का अध्ययन हो, आधे श्लोक का चिंतन, या एक अक्षर का उच्चारण। यह दृष्टिकोण बताता है कि धर्म और आत्मविकास के पथ पर कोई भी प्रयास तुच्छ नहीं होता।

दान का अर्थ केवल धन का वितरण नहीं है। ज्ञान, समय, श्रम, सेवा — सभी का दान संभव है। जिस प्रकार एक दीपक से कई दीप जलाए जा सकते हैं, उसी प्रकार एक सद्भावनापूर्ण क्रिया अनेक रूपों में समाज और आत्मा को प्रकाशित कर सकती है। अध्ययन भी केवल पुस्तकीय ज्ञान की बात नहीं करता, बल्कि वह निरंतर जिज्ञासा, आत्मपरीक्षण और बौद्धिक तप की प्रक्रिया है।

शुभ कर्मों की श्रेणी विस्तृत है — छोटे कर्म जैसे किसी की सहायता करना, वृक्ष लगाना, संयम रखना, क्रोध पर नियंत्रण, आदि भी इसमें आते हैं। जीवन की गुणवत्ता इसी में निहित है कि हम प्रत्येक दिन को कितना अर्थपूर्ण बना सके। जो व्यक्ति यह सुनिश्चित करता है कि उसका कोई भी दिन निष्फल न जाए, वह धीरे-धीरे एक ऐसा चरित्र गढ़ता है जो स्थिरता, गहराई और उज्ज्वल उद्देश्य से युक्त होता है।

इस सिद्धांत में निहित है कि आध्यात्मिक या नैतिक उन्नयन के लिए विशाल त्याग या संन्यास आवश्यक नहीं, बल्कि निरंतर छोटे-छोटे प्रयासों से भी उत्कृष्टता प्राप्त की जा सकती है। जीवन की सार्थकता विशाल उपलब्धियों में नहीं, बल्कि सतत प्रयत्न में है — वह भी एक-एक अक्षर के मूल्य की चेतना के साथ।