प्रासादशिखरस्थोऽपि काकः किं गरुडायते ॥ ॥१६-०६॥
उत्कृष्टता का आधार न तो पद है, न प्रतिष्ठा, न वंश, और न ही कोई बाह्य प्रदर्शन। यह केवल गुणों की उपस्थिति से ही प्राप्त होती है। समाज में यह प्रवृत्ति बार-बार प्रकट होती है कि जो ऊँचे पदों पर बैठते हैं, उन्हें महान या आदरणीय मान लिया जाता है, चाहे उनके भीतर कोई विशिष्टता हो या नहीं। किंतु बाह्य स्थिति की यह ऊँचाई आंतरिक शून्यता को नहीं ढँक सकती।
प्रासादशिखरस्थः काकः — महल की ऊँचाई पर स्थित कौआ — यह उपमा बतलाती है कि केवल ऊँचाई प्राप्त कर लेना महानता की स्वीकृति नहीं है। कौआ चाहे जितनी ऊँचाई पर बैठा हो, उसकी स्वभावगत सीमाएँ, उसकी तुच्छता, और उसकी उपयोगिता की मर्यादा नहीं बदलती। वही कौआ, यदि गरुड़ की तरह प्रतीत होने लगे, तो यह केवल भ्रांति होगी, सत्य नहीं। गरुड़ की महत्ता उसके पंखों की विशालता में नहीं, उसकी दृष्टि, दायित्व, और आत्मवृत्ति में है।
यह विचार केवल राजनीतिक या सामाजिक ही नहीं, आत्मचिंतन की भूमि पर भी उतना ही लागू होता है। व्यक्ति यदि आत्मविकास के मार्ग पर बिना गुणों के, केवल दिखावे के बल पर चलता है, तो वह स्वयं को तो धोखा देता ही है, समाज को भी भ्रम में डालता है। आत्मोत्कर्ष के लिए आवश्यक गुण — जैसे विवेक, संयम, करुणा, और सत्यनिष्ठा — यदि लुप्त हैं, तो कोई भी उपाधि या आभूषण अर्थहीन हो जाते हैं।
आधुनिक जीवन में, जहाँ सोशल प्रतिष्ठा, दृश्यप्रसार (visibility), और पदनाम को अत्यधिक मूल्य दिया जाता है, यह बोध अत्यंत आवश्यक है। प्रख्याति का मूल्य तब ही है जब वह गुणों की जड़ में उत्पन्न हो, अन्यथा वह केवल एक क्षणिक छाया बनकर रह जाती है। क्या किसी अभिनेता का किरदार निभाने वाला राजा, वास्तविक राजधर्म का वहन कर सकता है? क्या मंच की ऊँचाई पर खड़ा व्यक्ति अनिवार्यतः नैतिक दृष्टा होता है?
गुणों का निर्माण किसी बाहरी प्रणाली से नहीं होता। यह सतत् साधना, आत्मनिरीक्षण, और आंतरिक तप से उत्पन्न होता है। इसलिए जो व्यक्ति केवल अपने बाह्य परिवेश, वंश या अधिकार के कारण आदरणीय बनना चाहता है, वह अन्ततः अपने भीतर की रिक्तता से टकराता है। वह चाहे जितनी ऊँचाई पर बैठा हो, यदि उसकी अंतरात्मा शून्य है, तो वह गरुड़ नहीं — कौआ ही बना रहता है।
यह शिक्षाप्रद दृष्टिकोण, सामाजिक न्याय और सांस्कृतिक विवेक दोनों का अवलम्बन करता है। वह बतलाता है कि सम्मान, पद और सत्ता का नैतिक अधिष्ठान आवश्यक है — अन्यथा ये सभी मूल्य केवल दृश्य रूप में तो भारी प्रतीत होते हैं, पर वास्तव में खोखले।