श्लोक १६-१४

Chanakyaneeti Darpan by Acharya Chankya
प्रियवाक्यप्रदानेन सर्वे तुष्यन्ति जन्तवः ।
तस्मात्तदेव वक्तव्यं वचने का दरिद्रता ॥ १६-१४
सभी प्राणी प्रिय वचन के कारण प्रसन्न होते हैं। अतः केवल वही कहना उचित है; वचन में निर्धनता कैसी?

यह श्लोक सामाजिक व्यवहार और संवाद के सन्दर्भ में वाक्य और वाणी के महत्व को स्पष्ट करता है। 'प्रियवाक्यप्रदानेन'—अर्थात् मनोहर, सौम्य और प्रिय वचन प्रदान करने से समस्त जीव प्रसन्न होते हैं, जो मनोवैज्ञानिक और सामाजिक दोनों दृष्टिकोणों से समर्थित है। मनुष्य स्वभावतः ऐसी वाणी को स्वीकार करता है जो उसके हृदय को स्पर्श करे, जिससे आपसी संबंध सुदृढ़ होते हैं।

यहां 'जन्तवः' शब्द से न केवल मनुष्य, अपितु समस्त जीवों का संकेत होता है, जिससे यह स्पष्ट हो जाता है कि प्रभावशाली और सौम्य भाषण का प्रभाव सर्वव्यापी है। 'तस्मात् तदेव वक्तव्यं' कहने का आशय है कि संवाद में केवल वही वचन प्रयुक्त होने चाहिए जो सुनने में प्रिय, सौम्य, और अनुकूल हो। वाणी की ऐसी शैली सामाजिक सौहार्द और सामंजस्य बनाए रखने में सहायक होती है।

अगला पंक्ति 'वचने का दरिद्रता' वाणी में असामर्थ्य या अभाव को इंगित करती है। यहाँ वाणी की गरीबी या अभाव का प्रश्न नहीं उठता, क्योंकि उचित और प्रिय वाक्य ही पर्याप्त हैं। इसलिए, संवाद की गुणवत्ता में शब्दों की संख्या या भौतिक समृद्धि की अपेक्षा भाषण की सौम्यता, प्रभावकारिता और उपयुक्तता अधिक महत्वपूर्ण है।

दार्शनिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो यह श्लोक वाणी की अर्थपूर्णता पर बल देता है, न कि मात्रा पर। वाणी की संपन्नता उसकी मधुरता, प्रभावशीलता और समाज में सौहार्द स्थापित करने की क्षमता में है। अतः, यह श्लोक वाक् शक्ति की इस सूक्ष्मता को उद्घाटित करता है कि कैसे संवाद की सफलता वाणी के सौम्य और प्रिय स्वभाव में निहित होती है।

आचार्यकौटिल्य का यह सिद्धांत न केवल नीतिशास्त्रीय रूप से बल्कि व्यवहारिक जीवन में भी अत्यंत प्रासंगिक है, क्योंकि संवाद का उद्देश्य केवल सूचना का आदान-प्रदान नहीं, अपितु संबंधों की गहराई और सामाजिक समरसता का निर्माण भी है।

यह विचार मनोविज्ञान, भाषाविज्ञान तथा सामाजिक व्यवहार के क्षेत्रों में भी प्रतिध्वनित होता है, जहाँ प्रभावी संचार के लिए भाषा की मधुरता और उपयुक्तता को सर्वोपरि माना जाता है। अतः, संवाद में मूल्यांकन का आधार केवल शब्दों की संख्या नहीं, बल्कि उनकी गुणवत्ता एवं प्रभावशीलता होती है।