श्लोक १५-०७

Chanakyaneeti Darpan by Acharya Chankya
अयुक्तं स्वामिनो युक्तं युक्तं नीचस्य दूषणम् ।
अमृतं राहवे मृत्युर्विषं शङ्करभूषणम् ॥ ॥१५-०७॥
जिस प्रकार स्वामी के बिना अधूरा होता है तो नीच व्यक्ति के दोष के बिना युक्त नहीं होता। इसी प्रकार राहु के लिए अमृत मृत्यु है, और विष शङ्कर (शिव) के आभूषण के समान है।

संबंधों, स्वामित्व, और उपयुक्तता की धारणा अत्यंत महत्वपूर्ण है। स्वामी के बिना वस्तु या प्राणी अधूरा, असंपूर्ण रहता है; उसका अस्तित्व और प्रभाव निश्चित रूप से सीमित होता है। ठीक इसी प्रकार, नीच या निम्न व्यक्ति अपने दोषों के बिना पूर्ण नहीं होता; उनके दोष उसके स्वभाव का अनिवार्य हिस्सा होते हैं। यह दृष्टि सामाजिक और नैतिक स्तर पर गहन सत्य को प्रकट करती है कि व्यक्तित्व की छवि और उसका मूल्यांकन उसके गुणों के साथ-साथ दोषों से भी निर्मित होता है।

राहु और अमृत का उदाहरण गूढ़ तथा दार्शनिक है। राहु जिसे ज्योतिष शास्त्र में छाया ग्रह कहा जाता है, अमृत के समान होता है लेकिन उसके साथ मृत्यु जुड़ी है। इसका अर्थ है कि जीवन में कुछ तत्व जो बहिर्मुखी, चमकदार या आकर्षक लगते हैं, वे अंततः विनाशकारी भी हो सकते हैं। यह विरोधाभास जीवन की जटिलता और द्वैत को दर्शाता है।

विष का शङ्कर के आभूषण के रूप में होना भी विरोधाभासी प्रतीत होता है परंतु इसका अर्थ गहरा है। विष जो सामान्यत: घातक होता है, शिव के आभूषण के रूप में उसे एक नई शक्ति, नियंत्रण और संहार का आयाम प्रदान करता है। यह दर्शाता है कि जो चीज़ें अपने स्वाभाविक रूप में नकारात्मक या हानिकारक हैं, वे सही संदर्भ, समझ और विवेक के साथ शक्ति और सुरक्षा का माध्यम बन सकती हैं।

इस प्रकार की तुलना या रूपक जीवन की सूक्ष्मताओं को उजागर करते हैं—व्यक्तित्व की पूर्णता उसके दोषों से, जीवन की रहस्यमयता उसके विरोधाभासों से, और शक्ति उसकी संयमित अभिव्यक्ति से होती है। यह सत्य केवल तर्कपूर्ण चिंतन के द्वारा ही समझा जा सकता है, जो सतत् विचार और आत्म-परीक्षण का विषय है।

यह कथन यह भी इंगित करता है कि वस्तुओं और व्यक्तियों का मूल्यांकन सतही दृष्टि से नहीं, बल्कि उनके समग्र स्वरूप, उनके सकारात्मक और नकारात्मक दोनों पक्षों के समन्वित विश्लेषण से करना चाहिए। गूढ़ता और विरोधाभास जीवन का अनिवार्य हिस्सा हैं, और इन्हें समझे बिना सच्चा ज्ञान अधूरा रहता है।

अतः, यह दार्शनिक विचार व्यवहारिक जीवन के लिए भी महत्वपूर्ण है—हम जहाँ स्वामित्व, गुण-दोष, शक्ति-प्रभाव के बीच संतुलन और विवेक खोजते हैं, वहीं असंभव प्रतीत होने वाले विरोधाभासों के भीतर गहरा अर्थ और उपयोगिता छिपी होती है।