श्लोक १५-०५

Chanakyaneeti Darpan by Acharya Chankya
त्यजन्ति मित्राणि धनैर्विहीनं
पुत्राश्च दाराश्च सुहृज्जनाश्च ।
तमर्थवन्तं पुनराश्रयन्ति
अर्थो हि लोके मनुष्यस्य बन्धुः ॥ ॥१५-०५॥
धनहीन होकर मनुष्य अपने मित्रों को त्याग देता है। पुत्र, पत्नी और सच्चे मित्र भी उसे छोड़ देते हैं। परन्तु जब वह धनवान होता है तो फिर वे सभी उसी के पास आश्रय ग्रहण करते हैं, क्योंकि संसार में मनुष्य का बंधु केवल धन है।

धन का मानव जीवन में अत्यधिक प्रभाव है। यह न केवल भौतिक सुख-सुविधाओं का स्रोत है, बल्कि सामाजिक और पारिवारिक संबंधों को भी प्रभावित करता है। जब व्यक्ति धनहीन होता है, तब उसके मित्र, पुत्र, पत्नी और सच्चे मित्र भी उससे दूर हो जाते हैं। यह दिखाता है कि मानवीय संबंध कितने अस्थिर और धन के आधार पर निर्भर होते हैं।

संसार की व्यावहारिकता और स्वार्थपरता के कारण लोग मूल भावनाओं और रिश्तों को भूल जाते हैं। परिवार और मित्रता जैसे पवित्र संबंध भी धन की अनुपस्थिति में कमजोर पड़ जाते हैं। यहाँ मित्र, पुत्र, दाराः (पत्नी), और सुहृद (सच्चे मित्र) सभी को उदाहरण स्वरूप प्रस्तुत किया गया है कि कैसे ये बंधु भी धन के अभाव में त्याग दिए जाते हैं।

परन्तु धन प्राप्ति के बाद वही लोग पुनः आश्रय लेते हैं। इसका अर्थ है कि धन मनुष्य का वास्तविक बंधु है, जो जीवन में स्थायित्व और सुरक्षा प्रदान करता है। यह बंधन भावनात्मक या आध्यात्मिक नहीं, बल्कि सांसारिक और भौतिक है। धन के माध्यम से ही व्यक्ति सामाजिक व्यवस्था में अपनी जगह बनाता है।

यह तथ्य एक कटु सत्य को उद्घाटित करता है, जो दिखाता है कि मानवीय संबंध कितने हठधर्मी, स्वार्थपरक और अस्थायी होते हैं। परंपरागत रूप से जो रिश्ते पवित्र और अनमोल माने जाते हैं, वे भी धन की कमी में टूट जाते हैं। इसलिए धन का महत्व केवल आर्थिक दृष्टि से नहीं, बल्कि सामाजिक और भावनात्मक सुरक्षा के लिए भी अत्यंत आवश्यक है।

यह स्थिति जीवन के वैकल्पिक पक्ष को उजागर करती है — जहाँ भावनाओं की गरिमा गिर जाती है और वास्तविकता की कठोरता प्रकट होती है। सवाल उठता है कि क्या धन के बिना कोई स्थायी रिश्ता संभव है? या फिर यह मानवीय स्वभाव की कमजोरी है कि वह केवल स्वार्थ के आधार पर जुड़ता है? इस दृष्टि से यह श्लोक जीवन की कटु सच्चाइयों से सामना कराता है, जो सहज स्वीकार्य नहीं पर सत्य हैं।

इस प्रकार धन केवल आर्थिक वस्तु नहीं, अपितु सामाजिक ताने-बाने का केंद्र है, जो मनुष्य के अस्तित्व और उसके सामाजिक जीवन का आधार है। यह प्रेम और विश्वास की तुलना में भी अधिक प्रभावशाली बंधन है।