श्लोक १५-०४

Chanakyaneeti Darpan by Acharya Chankya
कुचैलिनं दन्तमलोपधारिणं
बह्वाशिनं निष्ठुरभाषिणं च ।
सूर्योदये चास्तमिते शयानं
विमुञ्चति श्रीर्यदि चक्रपाणिः ॥ १५-०४॥
कुचैलिन (जिसके दाढ़ की दाढ़ी बिखरी हो), दंतमलोप धारण करने वाला (जिसके दाँत खराब और टूटे हुए हों), बह्वाशिन (बहुत बोलने वाला), निष्ठुर भाषी (कठोर और क्रूर भाषा बोलने वाला), और जो सूर्योदय पर सोया हो तथा सूर्यास्त पर जागा हो — यदि चक्रपाणि (श्रीराम) ऐसे व्यक्ति को छोड़ देता है, तो उसकी वैभव, सम्मान और समृद्धि समाप्त हो जाती है।

व्यक्ति की आभा और वैभव उसके आचार, वाणी, और जीवनशैली से निर्मित होते हैं। कुचैलिन अर्थात् दाढ़ी बिखरी हुई, दंतमलोपधारिण अर्थात दांत खराब और टूटे हुए, बह्वाशिन अर्थात अत्यधिक बोलने वाला और निष्ठुरभाषिण अर्थात कठोर और अपमानजनक भाषा बोलने वाला व्यक्ति न केवल समाज में अपमान का कारण बनता है, बल्कि स्वयं के अस्तित्व और सम्मान के लिए भी खतरा होता है।

वाणी का प्रभाव अत्यंत गहरा होता है, क्योंकि शब्द मनुष्य के चरित्र का दर्पण होते हैं। बहुवचन और कठोरता से भरी भाषा सामाजिक संबंधों को तोड़ती है, विश्वास को कम करती है, और अंततः व्यक्ति को एकांत और अवमानना की ओर धकेलती है।

सूर्योदय पर सोने और सूर्यास्त पर जागने वाले का जीवन भी असामान्य और असंतुलित माना जाता है। यह दिनचर्या प्राकृतिक नियमों और स्वस्थ जीवनशैली के विपरीत है, जो अंततः मानसिक, शारीरिक, और सामाजिक असंतुलन को जन्म देती है।

चक्रपाणि, जो शक्ति, न्याय, और वैभव का प्रतीक है, यदि ऐसे व्यक्ति को त्याग देता है, तो वह व्यक्ति अपने जीवन के स्तंभों से वंचित हो जाता है। शक्ति और संरक्षण के अभाव में उसका वैभव छिन्न-भिन्न हो जाता है।

यहां 'विमुञ्चति श्रीः' का अर्थ है कि जो भी व्यक्ति इस प्रकार दोषयुक्त हो और फिर भी महान शक्ति द्वारा त्यागा जाए, वह अपने सम्मान, समृद्धि और सामाजिक प्रतिष्ठा से हाथ धो बैठता है। यह चेतावनी है कि स्वच्छता, संयम, और सद्वचन के बिना जीवन में सफलता असंभव है।

अतः जीवन के चार स्तम्भों — स्वरूप, व्यवहार, भाषा, और दिनचर्या — की शुद्धता अत्यंत आवश्यक है। जब ये स्तम्भ क्षीण हो जाते हैं, तो मनुष्य की सामाजिक स्थिति और वैभव पतनशील हो जाता है। शक्ति और संरक्षण तब भी किसी काम के नहीं, यदि व्यक्ति स्वयं अपने आचरण में दोषी हो।