अमृतमयशरीरः कान्तियुक्तोऽपि चन्द्रः ।
भवतिविगतरश्मिर्मण्डलं प्राप्य भानोः
परसदननिविष्टः को लघुत्वं न याति ॥ १५-१४॥
अमृत के रूप में शरीर, औषधियों का नायक, और चंद्रमा का प्रकाश—इन सबकी तुलना इस प्रकार की गई है कि उनके अस्तित्व और प्रभाव को समझने के लिए सबसे पहले अमरत्व की अवधारणा को स्पष्ट करना आवश्यक है। शरीर, जो अमृत से निर्मित माना गया है, न केवल जीवित रहने का माध्यम है, बल्कि यह वह अमूल्य धरोहर है जिसके बिना अस्तित्व की कल्पना नहीं की जा सकती।
औषधियाँ प्रकृति की अमृत तुल्य देन हैं, जो जीवन को पोषण और रक्षा प्रदान करती हैं। औषधियों के नायक का अर्थ है कि ये स्वास्थ्य और जीवित रहने के संरक्षक हैं, जो शरीर के भीतर अमृत की तरह काम करते हैं। अतः औषधियों का और शरीर का संबंध अमृत से है—दोनों जीवन को अमरता के करीब ले जाते हैं।
चंद्रमा की भांति, जो अपने सौंदर्य और प्रकाश के कारण मनुष्य के मन को आकर्षित करता है, अमृतमय शरीर भी अपनी अनंत चमक से जीवन को संजीवनी प्रदान करता है। चंद्रमा सूर्य के प्रकाश की परावृत्ति मात्र है, परन्तु जब वह अन्यत्र स्थापित होता है, तब भी उसकी छवि का भार और प्रभाव अनुभव किया जाता है।
यहाँ पर यह दर्शाया गया है कि कोई भी वस्तु, चाहे वह कितना भी हल्का प्रतीत हो, यदि किसी दूसरे के मुख या शरीर पर स्थापित हो जाए तो उसका भार महसूस होता है। इसका अर्थ यह है कि जीवन में प्रत्येक वस्तु, चाहे वह सृष्टि के लिए कितनी भी सूक्ष्म क्यों न हो, किसी न किसी रूप में प्रभावी होती है।
इस दृष्टिकोण से स्पष्ट होता है कि जीवन और शरीर के अमृतत्व, स्वास्थ्य के नायकों, और प्रकाश के स्रोत—ये सभी परस्पर जुड़े हुए हैं और एक दूसरे के अस्तित्व में सहायक हैं। मनुष्य के लिए यह समझना आवश्यक है कि जो चीजें बाहर से हल्की या नगण्य प्रतीत होती हैं, वे भी गहन प्रभाव और महत्व रखती हैं।
यह विचार मनुष्य को सतर्क करता है कि वह अपने अस्तित्व, स्वास्थ्य, और पर्यावरण को अनदेखा न करे क्योंकि उनका प्रभाव और महत्व कभी कम नहीं होता। जीवन का यह अमृत-रूप शरीर, औषधियों का नेतृत्व, और चंद्रमा की छवि एक-दूसरे के पूरक हैं जो मानव जीवन के गूढ़ रहस्यों और संवेदनाओं को उजागर करते हैं।