श्लोक १४-०७

Chanakyaneeti Darpan by Acharya Chankya
उत्पन्नपश्चात्तापस्य बुद्धिर्भवति यादृशी ।
तादृशी यदि पूर्वं स्यात्कस्य न स्यान्महोदयः ॥ ॥१४-०७॥
जिस प्रकार की बुद्धि पश्चात्ताप के उत्पन्न होने पर होती है, यदि वैसी ही पहले हो, तो किसका महान् उत्थान न हो?

मनुष्य के जीवन में अनेक निर्णय ऐसे होते हैं जो तात्कालिक लाभ, अहंकार, लालच या मोह के कारण लिए जाते हैं, लेकिन समय बीतने के साथ वे ही निर्णय पश्चात्ताप का कारण बन जाते हैं। यह पश्चात्ताप ही वह स्थिति है जहाँ विवेक प्रखर होता है, दृष्टि स्पष्ट होती है, और वास्तविकता का अनुभव तीव्र हो जाता है। जब संकट या पछतावे की अग्नि में मन जलता है, तब ही बुद्धि का जागरण होता है। किंतु यह विवेक यदि उसी क्षण उपलब्ध हो जाए जब निर्णय लिया जा रहा हो, तो जीवन की दिशा ही बदल सकती है।

प्रश्न यह है कि क्यों मनुष्य को विवेक का उदय दुःख के पश्चात ही होता है? क्या सुख, अवसर, या संतुलन की स्थिति में बुद्धि कुंठित हो जाती है? संभवतः जब आत्मा झूठे आश्वासनों, क्षणिक आकर्षणों, और भ्रमपूर्ण आकांक्षाओं के बोझ में दबी हो, तब सत्य दृष्टिगोचर नहीं होता। किंतु जब यह सब ढहता है, तब विवेक की आँखें खुलती हैं। यह विडंबना है कि पीड़ा में ही ज्ञान का द्वार अधिक सरलता से खुलता है।

यदि वही स्पष्टता, वही बुद्धि जो किसी गलती के बाद जागती है, पहले ही सक्रिय हो जाए, तो मनुष्य अनगिनत संकटों से बच सकता है। यह विचार केवल व्यक्तिगत नहीं, बल्कि सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक स्तर पर भी लागू होता है। क्या राजा, नेता, या समाज यदि पहले ही अपने कर्मों के दीर्घकालिक परिणामों को समझ सकें, तो विनाश, विद्रोह या पतन की नौबत आएगी? जब यह विवेक निर्णय के क्षण में जाग्रत होता है, तो वह केवल एक बचाव नहीं बल्कि सृजन का उपकरण बनता है।

मानव इतिहास इसी चक्र का साक्षी है — पहले अंधता, फिर भूल, फिर पीड़ा, और तब जाकर बोध। लेकिन जो व्यक्ति इस चक्र को तोड़ सके, और जो पश्चात्ताप में प्राप्त विवेक को समय रहते जाग्रत कर सके, वही सच्चा महापुरुष है। यह विचार आत्मनियंत्रण, मनोविज्ञान, और नेतृत्व की मूलभूत धारा को छूता है।

प्रश्न यह भी उठता है कि क्या पश्चात्ताप टाला जा सकता है? उत्तर यह है कि यदि मनुष्य अपने अंतःकरण को निरंतर जाग्रत रखे, अहंकार और लालच के प्रभाव से स्वयं को बचाए, और हर निर्णय से पूर्व एक बार अंतर्मन की पीड़ा की कल्पना कर ले — तब संभव है कि पश्चात्ताप की नौबत ही न आए।

महान् उत्थान केवल संसाधनों या अवसरों से नहीं होता, वह निर्णय की गुणवत्ता से होता है। और निर्णय की गुणवत्ता इस पर निर्भर करती है कि बुद्धि कितनी जाग्रत है — विशेषतः उस क्षण में जब मोह, क्रोध, या लोभ निर्णय को निर्देशित कर रहे हों। जो व्यक्ति पश्चात्ताप की बुद्धि को भविष्य की बुद्धि बना सके, वही न केवल स्वयं को उन्नत करता है, बल्कि समाज को भी नया मार्ग देता है।