श्लोक १४-२०

Chanakyaneeti Darpan by Acharya Chankya
त्यज दुर्जनसंसर्गं भज साधुसमागमम् ।
कुरु पुण्यमहोरात्रं स्मर नित्यमनित्यतः ॥ ॥१४-२०॥
दुर्जनों का संग त्यागो, सत्पुरुषों का संग करो, दिन-रात पुण्य कर्म करो, और सदा यह स्मरण रखो कि यह संसार नश्वर है।

मनुष्य जिनसे जुड़ता है, धीरे-धीरे उन्हीं जैसा बनता है। संगति केवल सामाजिक व्यवहार नहीं, वह चरित्र, चिंतन और चेतना का सूक्ष्म निर्धारक है। यदि व्यक्ति दुष्टजनों के संपर्क में रहता है, तो चाहे उसका स्वभाव आरंभ में निर्दोष क्यों न हो, वह अंततः उनके ही जैसे छल, स्वार्थ, और अधर्म की ओर अग्रसर हो जाता है। संगति का प्रभाव संक्रामक होता है — जैसे दुर्गंध युक्त स्थान पर लंबे समय तक रहना अंततः सुगंधित व्यक्ति को भी गंधी बना देता है।

इसके विपरीत, सत्संग — सज्जनों का सान्निध्य — मन, बुद्धि और आत्मा को शुद्ध करता है। सत्पुरुषों की संगति विचारों में उजास, आचरण में मर्यादा, और दृष्टि में गहराई लाती है। यह केवल व्यवहारिक लाभ की बात नहीं, बल्कि आध्यात्मिक और नैतिक उन्नति की आवश्यकता है। सज्जनों के संपर्क से मनुष्य में आत्मनिरीक्षण की प्रवृत्ति विकसित होती है, जिससे वह अपने दोषों को पहचान कर उन्हें परिमार्जित करने की ओर प्रवृत्त होता है।

पुण्य कर्म केवल बाह्य अनुष्ठान नहीं, बल्कि अंतःकरण की पवित्रता और समाज के प्रति करुणा-युक्त क्रियाओं का समुच्चय है। पुण्य वह है जो दूसरों के दुःख में सहभाग करे, धर्म की मर्यादा में रहे, और लोभ, मोह, क्रोध, हिंसा जैसे विकारों को नष्ट करे। यह दैनिक साधना है, जो दिन-रात की निरंतरता से जुड़ी हुई है — केवल विशेष अवसरों की नहीं।

नश्वरता का स्मरण मानव को विवेकशील बनाता है। जब यह स्पष्ट हो कि यह शरीर, यह वैभव, यह संबंध — सभी क्षणिक हैं, तो व्यक्ति की प्राथमिकताएँ स्वतः बदल जाती हैं। वह तात्कालिक लाभ के पीछे भागने के स्थान पर दीर्घकालिक मूल्यों की ओर उन्मुख होता है। मृत्यु की निश्चितता ही जीवन को गंभीर और उत्तरदायी बनाती है।

कितनी विडंबना है कि मनुष्य जिस संसार को नित्य और स्थायी मानकर उसके पीछे जीवन भर दौड़ता है, वही संसार क्षणभंगुर है। और जिस पुण्य, साधुता और सच्चे संग की उपेक्षा करता है, वही तत्व अंततः उसे कल्याण की ओर ले जाते हैं। स्मृति की शक्ति केवल अतीत को याद रखने का औजार नहीं, बल्कि नश्वरता को साक्षात अनुभव करने का माध्यम बन सकती है — यदि वह सजग हो।