श्लोक १४-१०

Chanakyaneeti Darpan by Acharya Chankya
यस्माच्च प्रियमिच्छेत्तु तस्य ब्रूयात्सदा प्रियम् ।
व्याधो मृगवधं कर्तुं गीतं गायति सुस्वरम् ॥ ॥१४-१०॥
जिसके लिए कोई प्रिय बात कहना चाहता है, उसे हमेशा प्रिय ही बोलना चाहिए। जैसे रोग कभी मृग (शिकार) का वध करते हुए सुरीली और प्रिय गीत गाता है।

वास्तव में, सामाजिक और व्यक्तिगत संबंधों में संवाद की प्रभावशीलता मुख्यतः उस वक्त की परिस्थिति, भावनात्मक स्थिति और संदेश की प्रकृति पर निर्भर करती है। जब कोई व्यक्ति किसी से प्रिय भाव से बात करता है, तो उसकी भाषा और शब्द चयन में एक प्रकार की सहजता, कोमलता और मधुरता होनी चाहिए, जो दूसरे के मन को स्पर्श करे। इस सादृश्य में, रोग के द्वारा मृग के वध की प्रक्रिया एक रोचक उदाहरण प्रस्तुत करती है जहाँ रोग, एक हानिकारक प्राणी होते हुए भी, अपनी क्रिया के दौरान सुरीली और मोहक ध्वनि निकालता है।

यहां रोग की मृगवध करने की क्रिया, जो स्वाभाविक रूप से खतरनाक और हिंसात्मक है, एक गीतात्मक और सुस्वर अभिव्यक्ति के साथ होती है। यह दर्शाता है कि भले ही क्रिया कठोर और दुखद हो, उसका प्रस्तुतीकरण इतना प्रिय और मोहक हो सकता है कि श्रोता उसकी निंदा न कर सके। इसी प्रकार, यदि संवाद में व्यक्ति हमेशा उस भावना से प्रिय और कोमल शब्द बोले जिससे उसे प्रेम, सद्भावना या लाभ हो, तो संबंध सुदृढ़ और सकारात्मक बनते हैं।

यह विचार राजनीतिक, सामाजिक और पारिवारिक संदर्भों में भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। कभी-कभी कठोर निर्णय या सच्चाई को भी इस तरह प्रस्तुत करना पड़ता है कि सुनने वाला उसे आसानी से ग्रहण कर सके। कठोर तथ्यों को भी यदि सुंदर और सम्मानजनक भाषा में प्रस्तुत किया जाए, तो वे अधिक स्वीकार्य होते हैं। इसके विपरीत, क्रोध या कटुता से बोले गए शब्द संबंधों को नष्ट कर सकते हैं और विपरीत प्रभाव पैदा करते हैं।

यहां दी गई तुलना से स्पष्ट होता है कि व्यवहार और संवाद में मधुरता और प्रियता बनाए रखना आवश्यक है, क्योंकि भाषा का स्वर ही संबंधों की दशा निर्धारित करता है। एक कुशल वक्ता या नीतिज्ञ वही है जो कठिन विषयों को भी प्रिय और आकर्षक रूप में प्रस्तुत कर सके, जिससे विरोध और विघ्न की संभावना कम हो।

यह दृष्टिकोण संवाद की कला, नेतृत्व की कुशलता और सामाजिक सौहार्द के लिए मूलभूत है। शब्दों की मधुरता और वक्तव्य की प्रियता से व्यक्ति अपने उद्देश्य को अधिक प्रभावशाली ढंग से प्राप्त कर सकता है, और विरोधी भी उसके सामने झुक सकते हैं। यह केवल एक व्यवहारिक रणनीति नहीं, बल्कि मानवीय संबंधों की एक गहरी सच्चाई है कि किसी को सही मार्ग दिखाने के लिए प्रियता की भाषा आवश्यक है।