द्वावेतौ सुखमेधेते यद्भविष्यो विनश्यति ॥ १३-०७॥
यहां जीवन के दो पहलुओं — अनागतविधाता (जो आने वाले समय को निर्मित करता है) और प्रत्युत्पन्नमति (जो वर्तमान में उत्पन्न हुआ विचार या मनोवृत्ति है) — को विचार करने का आग्रह है। दोनों में सुख अनुभव होता है, परंतु वे दोनों नित्य नहीं रहते। अनागतविधाता, भविष्य के अनिश्चित और अनियंत्रित स्वरूप को प्रतिबिंबित करता है, जबकि प्रत्युत्पन्नमति वर्तमान समय में उभरते हुए विचारों या भावनाओं का प्रतिनिधित्व करता है।
यह सुख जो इन दोनों से उत्पन्न होता है, स्थायी नहीं होता; वह एक क्षणिक आनंद है जो अंततः नष्ट हो जाता है। अनागतविधाता की नियति अज्ञात होती है, इसलिए भविष्य में मिलने वाला सुख भी अस्थिर है। प्रत्युत्पन्नमति के विचार अक्सर क्षणिक होते हैं, जो मनोवृत्तियों के रूप में उत्पन्न होकर शीघ्र ही विलीन हो जाते हैं। इस कारण सुख का यह रूप सदा टिकाऊ नहीं हो सकता।
जीवन में सुख की यह दुष्परिणति बताती है कि जो भी आनंद हम भविष्य में या वर्तमान की उत्पन्न मानसिक अवस्थाओं से प्राप्त करते हैं, वे निश्चितता से सुरक्षित नहीं होते। सुख का यह क्षणिक स्वरूप संसार के अनित्य और परिवर्तनशील चरित्र का परिचायक है। इसे समझे बिना मनुष्य सुख की स्थिरता की कामना करता है, जो अंततः निराशा और दुःख में परिवर्तित होती है।
यहाँ पर सूक्ष्म रूप से यह भी समझना आवश्यक है कि भविष्य और वर्तमान के बीच संबंध द्वैध है, जिसमें दोनों ही भागों का सुख अस्थायी है। न केवल मन में आने वाले विचार, बल्कि उनके पीछे छिपा हुआ अनिश्चित भविष्य भी सुख का क्षणिक स्रोत है। इस प्रकार, सुख को स्थायी मानना और भविष्य या वर्तमान मानसिक अवस्थाओं में उस स्थिरता की तलाश करना मूर्खता होगी।
मनुष्य की प्रवृत्ति है सुख को पकड़ने की, परंतु यह सुख शून्यता के समान क्षणिक है, जो एक क्षण में प्राप्त होता है और दूसरे में समाप्त हो जाता है। इसका वास्तविक कारण यह है कि सुख को वस्तुनिष्ठ या बाह्य कारणों से जोड़ दिया जाता है जो अनिश्चित और अस्थिर हैं। इसलिए यह दुख का कारण भी बनता है। सुख का वास्तविक अनुभव तब ही संभव है जब व्यक्ति इन अस्थिरताओं से ऊपर उठकर स्थायी आनन्द के स्रोत को समझे।
इस विवेचन से स्पष्ट होता है कि सुख के लिए अनागत और उत्पन्न दोनों प्रकार की मानसिक अवस्थाओं पर निर्भरता अस्थिरता और विनाश के साथ जुड़ी है। स्थायित्व, संतोष और सुख के लिए गहरे और अधिक स्थिर आधार की आवश्यकता होती है, जो अस्थायी मानसिक भावों और अनिश्चित भविष्य से परे हो।